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त्वं पुर॑ इन्द्र चि॒किदे॑ना॒ व्योज॑सा शविष्ठ शक्र नाश॒यध्यै॑ । त्वद्विश्वा॑नि॒ भुव॑नानि वज्रि॒न्द्यावा॑ रेजेते पृथि॒वी च॑ भी॒षा ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

tvam pura indra cikid enā vy ojasā śaviṣṭha śakra nāśayadhyai | tvad viśvāni bhuvanāni vajrin dyāvā rejete pṛthivī ca bhīṣā ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

त्वम् । पुरः॑ । इ॒न्द्र॒ । चि॒कित् । ए॒नाः॒ । वि । ओज॑सा । स॒वि॒ष्ठ॒ । श॒क्र॒ । ना॒श॒यध्यै॑ । त्वत् । विश्वा॑नि । भुव॑नानि । व॒ज्रि॒न् । द्यावा॑ । रे॒जे॒ते॒ इति॑ । पृ॒थि॒वी इति॑ । च॒ । भी॒षा ॥ ८.९७.१४

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:97» मन्त्र:14 | अष्टक:6» अध्याय:6» वर्ग:38» मन्त्र:4 | मण्डल:8» अनुवाक:10» मन्त्र:14


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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

शत्रु- नगरियों का विध्वंस

पदार्थान्वयभाषाः - [१] हे (शविष्ठ) = बलवत्तम, शक्र शत्रुहनन के लिये शक्तिवाले, (चिकित्) = ज्ञानी (इन्द्र) = परमैश्वर्यवन् प्रभो! (त्वम्) = आप (ओजसा) = ओजस्विता के द्वारा (एना) = इन (पुरः) = शत्रु - पुरियों को (विनाशयध्यै) = विनष्ट करने के लिये होते हैं। 'काम' इन्द्रियों में अपनी नगरी बनाता है, 'क्रोध' मन में तथा 'लोभ' बुद्धि में। प्रभु इन सब पुरियों का विनाश कर देते हैं। [२] हे (वज्रिन्) = वज्रहस्त प्रभो ! (त्वत्) = आप से (विश्वानि भुवनानि) = सब भुवन [प्राणी] भीषा भय से काँप उठते हैं। (च) = और (द्यावापृथिवी) = द्युलोक व पृथिवीलोक भी भय से (रेजेते) = काँप जाते हैं।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- प्रभु अपनी शक्ति से शत्रु पुरियों का विध्वंस कर देते हैं। प्रभु के भय से सब प्राणी व द्यावापृथिवी काँप उठते हैं।
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Indra, most potent hero of noble action, you know how to break down the strongholds of evil and darkness with this lustrous force of yours. O wielder of the force and power of thunder, by you and by the splendour of your power all regions of the world and even the earth and heaven shake with awe.