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तमिन्द्रं॑ जोहवीमि म॒घवा॑नमु॒ग्रं स॒त्रा दधा॑न॒मप्र॑तिष्कुतं॒ शवां॑सि । मंहि॑ष्ठो गी॒र्भिरा च॑ य॒ज्ञियो॑ व॒वर्त॑द्रा॒ये नो॒ विश्वा॑ सु॒पथा॑ कृणोतु व॒ज्री ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

tam indraṁ johavīmi maghavānam ugraṁ satrā dadhānam apratiṣkutaṁ śavāṁsi | maṁhiṣṭho gīrbhir ā ca yajñiyo vavartad rāye no viśvā supathā kṛṇotu vajrī ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

तम् । इन्द्र॑म् । जो॒ह॒वी॒मि॒ । म॒घऽवा॑नम् । उ॒ग्रम् । स॒त्रा । दधा॑नम् । अप्र॑तिऽस्कुतम् । शवां॑सि । मंहि॑ष्ठः । गीः॒ऽभिः । आ । च॒ । य॒ज्ञियः॑ । व॒वर्त॑त् । रा॒ये । नः॒ । विश्वा॑ । सु॒ऽपथा॑ । कृ॒णो॒तु॒ । व॒ज्री ॥ ८.९७.१३

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:97» मन्त्र:13 | अष्टक:6» अध्याय:6» वर्ग:38» मन्त्र:3 | मण्डल:8» अनुवाक:10» मन्त्र:13


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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

सुपथ से ऐश्वर्य प्राप्ति

पदार्थान्वयभाषाः - [१] (तम्) = उस (इन्द्रम्) = सर्वशक्तिमान् प्रभु को (जोहवीमि) = पुकारता हूँ। जो (मघवानम्) = ऐश्वर्यशाली हैं, (उग्रम्) = तेजस्वी हैं। (सत्रा) = सचमुच (शवांसि) = बलों को (दधानम्) = धारण कर रहे हैं अतएव (अप्रतिष्कुतम्) = शत्रुओं से अप्रतिरोधनीय हैं। [२] वे प्रभु (मंहिष्ठः) = दातृतम हैं, महान् दाता हैं, (च) = और (गीर्भिः) = ज्ञान की वाणियों से (यज्ञियः) = पूजनीय हैं। ये प्रभु (राये) = ऐश्वर्य को प्राप्त कराने के लिये (आववर्तत्) = हमें आभिमुख्येन प्राप्त हों। ये (वज्री) = वज्रहस्त प्रभु (नः) = हमारे लिये (विश्वा सुपथा) = सब सुमार्गों को (कृणोतु) = करें। हम विपथ से हटकर सदा सुमार्ग पर चलनेवाले बनें।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- हम प्रभु को पुकारें। प्रभु ही हमारे सब शत्रुओं का संहार करते हैं। सब आवश्यक धनों को प्राप्त कराते हैं। हमारे मार्गों को सुपथ करते हैं, हमें विपथ से परावृत्त करते हैं।
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - That Indra, ruler of the world, I invoke and address, illustrious, pious and true, wielder of unopposed powers, and I pray may the most generous and adorable lord of thunderous power, in response to our voice, turn to us constantly and clear our paths of advancement for the achievement of wealth, power, honour and excellence of the world.