पदार्थान्वयभाषाः - [१] स्तोता लोग (नेमिम्) = इस ब्रह्माण्ड की परिधिरूप उस प्रभु को, सर्वत्र व्याप्त उस प्रभु को नमस्कार करते हैं। (विप्राः) = ज्ञानी लोग (चक्षसा) = प्रभु की महिमा को सर्वत्र देखने के द्वारा तथा (अभिस्वरा) = स्तोत्र के द्वारा (मेषम्) = [मेषति = sprinkle] = सर्वसुखों के सेचक प्रभु को नमस्कार करते हैं । [२] (सुदीतयः) = उत्तम ज्ञान की दीप्तिवाले, (अद्रुहः) = द्रोह की भावना से रहित (वः) = तुम सब (अपि) = भी (कर्णे) = प्रभु महिमा के श्रवण में (तरस्विनः) = वेगवाले होते हुए (ऋक्वभिः) = ऋचाओं के द्वारा अर्चन - साधन मन्त्रों के द्वारा (सम्) = उस प्रभु के साथ संगत होवो ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- ज्ञानी लोग सर्वत्र प्रभु की महिमा का दर्शन करते हुए उस व्यापक प्रभु को स्तोत्रों द्वारा प्रणाम करते हैं। हम भी ज्ञानदीप्ति व अद्रोह को धारण करते हुए इन स्तोत्रों का श्रवण करें और अर्चन - साधन मन्त्रों के द्वारा प्रभु का स्तवन करें।