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देवता: इन्द्र: ऋषि: सुकक्षः छन्द: गायत्री स्वर: षड्जः

कस्य॒ वृषा॑ सु॒ते सचा॑ नि॒युत्वा॑न्वृष॒भो र॑णत् । वृ॒त्र॒हा सोम॑पीतये ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

kasya vṛṣā sute sacā niyutvān vṛṣabho raṇat | vṛtrahā somapītaye ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

कस्य॑ । वृषा॑ । सु॒ते । सचा॑ । नि॒युत्वा॑न् । वृ॒ष॒भः । र॒ण॒त् । वृ॒त्र॒ऽहा । सोम॑ऽपीतये ॥ ८.९३.२०

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:93» मन्त्र:20 | अष्टक:6» अध्याय:6» वर्ग:24» मन्त्र:5 | मण्डल:8» अनुवाक:9» मन्त्र:20


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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

कस्य सचा

पदार्थान्वयभाषाः - [१] [सच्=To honour, To assist ] (कस्य) = उस आनन्दमय प्रभु के पूजन व सहाय से [सचा - सच्] (सुते) = शरीर में सोम का सम्पादन होने पर यह उपासक (वृषा) = अंग-प्रत्यंग में उस सोम का सेचन करनेवाला होता है। यह (नियुत्वान्) = प्रशस्त इन्द्रियाश्वोंवाला, (वृषभ:) = शक्तिशाली बनकर (रणत्) = प्रभु-स्तवन में रमण करता है। [२] इस प्रभु-पूजन से ही यह (वृत्रहा) = वासना को विनष्ट करनेवाला होता हुआ (सोमपीतये) = सोम के पान (रक्षण) के लिये समर्थ होता है।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- प्रभु-पूजन हमें वासनाओं को जीतने व सोमरक्षण में समर्थ करता है। सोमरक्षण द्वारा शक्तिशाली व प्रशस्तेन्द्रिय बनकर यह और भी अधिक प्रभु-स्तवन में रमण करनेवाला होता है।
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - In whose soma yajna does Indra, generous giver of showers of joy, master of cosmic dynamics, virile all creative, destroyer of darkness, want and suffering, take delight as a friend and participate in the creation, protection and promotion of the soma joys of life?