अधा॑ ते॒ अप्र॑तिष्कुतं दे॒वी शुष्मं॑ सपर्यतः । उ॒भे सु॑शिप्र॒ रोद॑सी ॥
अंग्रेज़ी लिप्यंतरण
मन्त्र उच्चारण
adhā te apratiṣkutaṁ devī śuṣmaṁ saparyataḥ | ubhe suśipra rodasī ||
पद पाठ
अध॑ । ते॒ । अप्र॑तिऽस्कुतम् । दे॒वी इति॑ । शुष्म॑म् । स॒प॒र्य॒तः॒ । उ॒भे इति॑ । सु॒ऽशि॒प्र॒ । रोद॑सि॒ इति॑ ॥ ८.९३.१२
ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:93» मन्त्र:12
| अष्टक:6» अध्याय:6» वर्ग:23» मन्त्र:2
| मण्डल:8» अनुवाक:9» मन्त्र:12
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार
अप्रतिष्कुत शुष्म
पदार्थान्वयभाषाः - [१] हे (सुशिप्र) = शोभन हनु व नासिकावाले, हमारे लिये उत्तम जबड़ों व नासिका को प्राप्त करानेवाले प्रभो ! (अधा) = अब (ते) = आपके (अप्रतिष्कुतम्) = किन्हीं भी शत्रुओं से आक्रान्त न होने योग्य (शुष्मम्) = बल को (उभे) = दोनों (देवी) = दिव्य गुण सम्पन्न प्रकाशमय (रोदसी) = द्यावापृथिवी (सपर्यतः) = पूजित करते हैं। ये दोनों द्यावापृथिवी आपके अधीन होते हैं। [२] प्रभु ने हमें जबड़े भोजन को चबाने के लिये तथा नासिका छिद्र प्राणसाधना के लिये दिये हैं। खूब चबाया गया भोजन यदि पृथिवीरूप शरीर को दृढ़ करता है तो प्राणसाधना मस्तिष्क को ज्ञानदीप्त करती है। इस प्रकार द्यावापृथिवी में प्रभु के बल का प्रकाश होता है। तब शरीर रोगों से आक्रान्त नहीं होता और मस्तिष्क दुर्विचारों से अभिभूत नहीं होता ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- प्रभु ने जबड़े दिये हैं। इनके द्वारा खूब चवाकर खाया गया भोजन शरीर को दृढ़ बनाता है। प्रभु ने नासिका छिद्र प्राणसाधना के लिये दिये हैं, यह प्राणसाधना मस्तिष्क को ज्ञानदीप्त बनाती है। अब न रोग, न दुर्विचार हमारे पर आक्रमण करते हैं।
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डॉ. तुलसी राम
पदार्थान्वयभाषाः - And then, O lord of glorious countenance, both the divine earth and heaven honour and serve your irresistible might.
