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आ त्वा॑ विश॒न्त्विन्द॑वः समु॒द्रमि॑व॒ सिन्ध॑वः । न त्वामि॒न्द्राति॑ रिच्यते ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ā tvā viśantv indavaḥ samudram iva sindhavaḥ | na tvām indrāti ricyate ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

आ । त्वा॒ । वि॒श॒न्तु॒ । इन्द॑वः । स॒मु॒द्रम्ऽइ॑व । सिन्ध॑वः । न । त्वाम् । इ॒न्द्र॒ । अति॑ । रि॒च्य॒ते॒ ॥ ८.९२.२२

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:92» मन्त्र:22 | अष्टक:6» अध्याय:6» वर्ग:19» मन्त्र:2 | मण्डल:8» अनुवाक:9» मन्त्र:22


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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

प्रभु में प्रवेश

पदार्थान्वयभाषाः - [१] 'इन्दु' शब्द सोम का वाचक है। सोम का रक्षण करनेवाले पुरुष भी यहाँ 'इन्दु' कहे गये हैं। ये (इन्दवः) = सोम का अपने में रक्षण करनेवाले पुरुष (त्वा आविशन्तु) = हे प्रभो ! आप में प्रवेश करनेवाले हों। इस प्रकार वे आप में प्रवेश कर जायें (इव) = जैसे (सिन्धवः) = नदियाँ (समुद्रम्) = समुद्र में प्रवेश कर जाती हैं और समुद्र ही हो जाती हैं। [२] हे (इन्द्र) = परमैश्वर्यशालिन् प्रभो ! वस्तुतः (त्वा न अतिरिच्यते) = कोई भी वस्तु आप से अतिरिक्त नहीं है। सभी को आपने अपने गर्भ में धारण किया हुआ है। सोमरक्षक पुरुष अपने को आप में अनुभव करता है।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- हम सोमरक्षण करते हुए प्रभु में प्रवेश करनेवाले बनें।
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - All the flows of soma, joys, beauties and graces of life concentrate in you, and thence they flow forth too, Indra, lord supreme, just as all rivers flow and join in the ocean and flow forth from there. O lord no one can comprehend and excel you.