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त्वमि॑न्द्र य॒शा अ॑स्यृजी॒षी श॑वसस्पते । त्वं वृ॒त्राणि॑ हंस्यप्र॒तीन्येक॒ इदनु॑त्ता चर्षणी॒धृता॑ ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

tvam indra yaśā asy ṛjīṣī śavasas pate | tvaṁ vṛtrāṇi haṁsy apratīny eka id anuttā carṣaṇīdhṛtā ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

त्वम् । इ॒न्द्र॒ । य॒शाः । अ॒सि॒ । ऋ॒जी॒षी । श॒व॒सः॒ । प॒ते॒ । त्वम् । वृ॒त्राणि॑ । हं॒सि॒ । अ॒प्र॒तीनि॑ । एकः॑ । इत् । अनु॑त्ता । च॒र्ष॒णि॒ऽधृता॑ ॥ ८.९०.५

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:90» मन्त्र:5 | अष्टक:6» अध्याय:6» वर्ग:13» मन्त्र:5 | मण्डल:8» अनुवाक:9» मन्त्र:5


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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

'यशाः ऋजीषी' प्रभु

पदार्थान्वयभाषाः - [१] हे (इन्द्र) = शत्रुओं का विद्रावण करनेवाले प्रभो ! (त्वम्) = आप (यशाः असि) = यशस्वी हो । हे (शवसस्पते) = शक्ति के स्वामिन् प्रभो! आप (ऋजीषी) = उपासक के लिये (ऋजुत्स) = की प्रेरणा देनेवाले हो। [२] (त्वम्) = आप (एकः इत्) = अकेले ही बिना ही किसी की सहायता के (चर्षणीधृता) = मनुष्यों का धारण करनेवाले वज्र के द्वारा (वृत्राणि) = हमारे वासनारूप शत्रुओं को (हंसि) = नष्ट करते हो। उन शत्रुओं को जो (अनुत्ता) = सामान्यतः परे धकेले नहीं जा सकते और (अप्रतीनि) = जिनका सामना करना बड़ा कठिन है।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- प्रभु हमें यशस्वी जीवनवाला बनाते हैं, सरलता की प्रेरणा देते हैं और अतिप्रबल भी वासनारूप शत्रुओं को विनष्ट करते हैं।
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Indra, lord all powerful, ruler of the world, yours is the honour, yours is the creation of wealth and joy. All by yourself, unsubdued, you eliminate irresistible forms of evil and darkness by the power you wield for the people.