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आ नू॒नं या॑तमश्विने॒मा ह॒व्यानि॑ वां हि॒ता । इ॒मे सोमा॑सो॒ अधि॑ तु॒र्वशे॒ यदा॑वि॒मे कण्वे॑षु वा॒मथ॑ ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ā nūnaṁ yātam aśvinemā havyāni vāṁ hitā | ime somāso adhi turvaśe yadāv ime kaṇveṣu vām atha ||

पद पाठ

आ । नू॒नम् । या॒त॒म् । अ॒श्वि॒ना॒ । इ॒मा । ह॒व्यानि॑ । वा॒म् । हि॒ता । इ॒मे । सोमा॑सः । अधि॑ । तु॒र्वशे॑ । यदौ॑ । इ॒मे । कण्वे॑षु । वा॒म् । अथ॑ ॥ ८.९.१४

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:9» मन्त्र:14 | अष्टक:5» अध्याय:8» वर्ग:32» मन्त्र:4 | मण्डल:8» अनुवाक:2» मन्त्र:14


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शिव शंकर शर्मा

समन्त्री, ससेनानायक और सेनासहित राजा प्रजाओं से आदरणीय हैं, यह शिक्षा इससे देते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - (अश्विना) हे अश्वयुत धर्मात्मा राजा और अमात्यादिवर्ग ! आप प्रजारक्षार्थ स्वभवन को भी त्याग (नूनम्) अवश्य प्रजाओं के समीप (आ+यातम्) आवें। (इमे) ये (हव्यानि) आपके योग्य खाद्य पदार्थ जहाँ-तहाँ शोभित हैं और (वाम्) आप दोनों के (हिता) हितकारी भी हैं, इन्हें ग्रहण करें। हे राजन् ! (इमे+सोमासः) ये जो सोमरस हैं, वे (अधि+तुर्वशे) शीघ्र वश करनेवाले अमात्य आदि के लिये वर्तमान हैं। (इमे) ये सोम (यदौ) सेनापति आदिकों के लिये और ये सोम (कण्वेषु) विद्वानों के लिये तत्पश्चात् (वाम्) आप दोनों के लिये भी हैं ॥१४॥
भावार्थभाषाः - प्रजाओं को उचित है कि वे यथायोग्य सत्कार राजा और अमात्यादिकों का अन्नादिकों से भी करें ॥१४॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (अश्विना) हे व्यापक ! (नूनम्) निश्चय (आयातम्) आएँ (इमा, हव्यानि) ये हव्य=भोजनार्ह पदार्थ (वाम्, हिता) आपके अनुकूल हैं (इमे, सोमासः) ये सोमरस (तुर्वशे) शीघ्र वश करनेवाले मनुष्य के यहाँ (यदौ) सामान्य जन के यहाँ (अथ) और (इमे, कण्वेषु) ये सोमरस विद्वानों के यहाँ (वाम्) आपके अनुकूल सिद्ध हुए हैं ॥१४॥
भावार्थभाषाः - हे सर्वत्र विख्यात सभाध्यक्ष तथा सेनाध्यक्ष ! आप हमको प्राप्त होकर हमारा सत्कार स्वीकार करें। हम लोगों ने आपके अनुकूल भोजन तथा सोमरस सिद्ध किया है, इसको स्वीकार कर हम पर प्रसन्न हों ॥१४॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

'तुर्वश-यदु-कण्व'

पदार्थान्वयभाषाः - [१] हे (अश्विना) = प्राणपानो! आप (नूनम्) = निश्चय से (आयातम्) = हमें प्राप्त होवो । (इमा) = ये (हव्यानि) = हव्य पदार्थ, यज्ञशेष के रूप में सेवन किये जानेवाले पदार्थ (वां हिता) = आपके लिये निहित हुए हैं। हव्य पदार्थों का सेवन प्राणसाधना के लिये बड़ा सहायक होता है। [२] (अथः इमे) = ये अब (वाम्) = आपके (सोमासः) = सोमकण आपके द्वारा रक्षित होनेवाले सोमकण (तुर्वशे अधि) = शत्रुओं को (त्वरा) = से वश में करनेवाले पुरुष में होते हैं। (यदौ) = यत्नशील पुरुष में, सदा क्रिया में तत्पर पुरुष में इनका निवास होता है । (इमे) = ये सोमकण (कण्वेषु) = मेधावी पुरुषों में निवास करते हैं। प्राणसाधना ही सोमरक्षण के द्वारा हमें 'तुर्वश, यदु वा कण्व' बनाती है।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- प्राणसाधना के साथ हव्य पदार्थों का ही सेवन अभीष्ट है। प्राणसाधना से सोम की शरीर में ऊर्ध्वगति होती है। तब हम 'शत्रुओं को वश में करनेवाले यत्नशील व मेधावी' बन पाते हैं।
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शिव शंकर शर्मा

प्रजाभी राजानः समन्त्रिणः ससेनानायकाः ससेना आदरणीयाः।

पदार्थान्वयभाषाः - हे अश्विना=अश्विनौ=पुण्यकृतौ राजानौ ! युवां प्रजारक्षायै स्वप्रसादमपि विहाय। नूनमवश्यं प्रजासमीपमायातम्= आगच्छतम्=तत्र तत्र च। इमा=इमानि=पुरतो दृश्यमानानि। हव्यनि=भोक्तव्यानि वस्तूनि युष्मदर्थानि सन्ति। पुनः। वाम्=युवयोः। हिता=हितानि=हितकारकाणि सन्ति। हे राजानौ। इमे सोमासः=सोमा विविधपदार्थाः। तुर्वशे अधि=“अधिः सप्तम्यर्थानुवादी” तुर्वशे शीघ्रवशकारिणि अमात्यादौ निमित्ते वर्तन्ते। इमे च। यदौ=युवयोरनुगामिनि सेनापत्यादौ। इमे च। कण्वेषु=विद्वत्सु निमित्तेषु वर्तन्ते। अथ=तदनु। वाम्=युवयोः कृते सर्वे पदार्थाः संस्कृताः सन्ति। अतः सर्वैरनुचरैः सह। गच्छतमिति प्रार्थये ॥१४॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (अश्विना) हे अश्विनौ ! (नूनम्) निश्चयं (आयातम्) आगच्छतम् (इमा, हव्यानि) इमानि भोजनार्हद्रव्याणि (वाम्, हिता) युवयोरनुकूलान्येव (इमे, सोमासः) इमे सोमाश्च (तुर्वशे, अधि) शीघ्रवशे जने (यदौ) सामान्यजने (अथ) अथ च (इमे कण्वेषु) विद्वत्सु इमे रसाः (वाम्) युवयोर्हिताः ॥१४॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Come, Ashvins, for sure without fail. These presentations, adorations and offerings of hospitality are reserved for you whether they are in the house of the stormy warrior or dynamic intellectual or artist or citizen or the sagely seer, they are for you and you alone.