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प्र व॒ इन्द्रा॑य बृह॒ते मरु॑तो॒ ब्रह्मा॑र्चत । वृ॒त्रं ह॑नति वृत्र॒हा श॒तक्र॑तु॒र्वज्रे॑ण श॒तप॑र्वणा ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

pra va indrāya bṛhate maruto brahmārcata | vṛtraṁ hanati vṛtrahā śatakratur vajreṇa śataparvaṇā ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

प्र । वः॒ । इन्द्रा॑य । बृ॒ह॒ते । मरु॑तः । ब्रह्म॑ । अ॒र्च॒त॒ । वृ॒त्रम् । ह॒न॒ति॒ । वृ॒त्र॒ऽहा । श॒तऽक्र॑तुः । वज्रे॑ण । श॒तऽप॑र्वणा ॥ ८.८९.३

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:89» मन्त्र:3 | अष्टक:6» अध्याय:6» वर्ग:12» मन्त्र:3 | मण्डल:8» अनुवाक:9» मन्त्र:3


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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

'वृत्रहा - शतक्रतु' इन्द्र

पदार्थान्वयभाषाः - [१] हे (मरुतः) = मितरावी क्रियाशील स्तोताओ ! आप (नः) - तुम्हारे सच्चे सखा उस (बृहते) = महान् (इन्द्राय) = परमैश्वर्यशाली प्रभु के लिये (ब्रह्म) = ज्ञानपूर्वक की गयी स्तुतिवाणियों का (प्र अर्चत) = प्रकर्षेण उच्चारण करो। इन ज्ञानवाणियों द्वारा प्रभु का खूब ही अर्चन करो-पूजन करो। [२] वह (वृत्रहा) = ज्ञान की आवरणभूत वासना को विनष्ट करनेवाला (शतक्रतुः) = अनन्त प्रज्ञान व शक्तिवाला प्रभु (शतपर्वणा) = शतसंख्याक धाराओंवाले (वज्रेण) = ज्ञानवज्र के द्वारा [वज:- गति - ज्ञान] (वृत्रं हनति) = वृत्र का विनाश करते हैं। ज्ञानी के नित्य वैरी कामरूप शत्रु का विध्वंस करके प्रभु हमारे जीवनों को दीप्त करते हैं।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- हम उस महान् इन्द्र का स्तवन करें। प्रभु ज्ञानवज्र द्वारा हमारे वासनारूप शत्रु को- को विनष्ट करेंगे।
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - O Maruts, vibrant brilliant leaders of humanity, worship Indra, lord omnipotent beyond all bounds, and study the divine powers immanent in nature, with hymns of Vedic adoration. He is the destroyer of evil, dispels darkness and ignorance, and destroys the negative uncreative forces with his thunderbolt of hundredfold power.