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प्रेष्ठं॑ वो॒ अति॑थिं स्तु॒षे मि॒त्रमि॑व प्रि॒यम् । अ॒ग्निं रथं॒ न वेद्य॑म् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

preṣṭhaṁ vo atithiṁ stuṣe mitram iva priyam | agniṁ rathaṁ na vedyam ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

प्रेष्ठ॑म् । वः॒ । अति॑थिम् । स्तु॒षे । मि॒त्रम्ऽइ॑व । प्रि॒यम् । अ॒ग्निम् । रथ॑म् । न । वेद्य॑म् ॥ ८.८४.१

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:84» मन्त्र:1 | अष्टक:6» अध्याय:6» वर्ग:5» मन्त्र:1 | मण्डल:8» अनुवाक:9» मन्त्र:1


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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

'प्रेष्ठ अतिथि' का स्तवन

पदार्थान्वयभाषाः - [१] मैं (वः) = सब के (प्रेष्ठम्) = प्रियतम उस प्रभु को स्तुषे =स्तुत करता हूँ। उस प्रभु को जो अतिथिम् = हमारे हित के लिये हमें निरन्तर प्राप्त होनेवाले हैं [अत सातत्यगमने ] । जो मित्रं इव प्रियम् = एक मित्र के समान प्रिय हैं - उत्तम प्रेरणाओं को देते हुए प्रीणित करनेवाले हैं। [२] उस प्रभु का मैं स्तवन करता हूँ जो अग्निम् अग्रेणी हैं-हमें निरन्तर आगे ले चलनेवाले हैं। रथं न वेद्यम् = इस जीवन-यात्रा में रथ के समान जानने योग्य हैं। प्रभु के द्वारा ही हमारी जीवन-यात्रा पूर्ण हो सकेगी।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- प्रभु हमारे प्रियतम निरन्तर हमारे हित के लिये गतिवाले मित्र हैं। वे ही हमें आगे ले चलनेवाले व हमारी जीवन-यात्रा को पूर्ण करनेवाले रथ के समान हैं। इन प्रभु का ही हम स्तवन करें।
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - I sing and celebrate the glories of Agni, lord omniscient, light and leader of the world, dearest and most welcome as an enlightened guest, loving as a friend, who like a divine harbinger, reveals the light of knowledge to us.