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अ॒भ्यू॑र्णोति॒ यन्न॒ग्नं भि॒षक्ति॒ विश्वं॒ यत्तु॒रम् । प्रेम॒न्धः ख्य॒न्निः श्रो॒णो भू॑त् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

abhy ūrṇoti yan nagnam bhiṣakti viśvaṁ yat turam | prem andhaḥ khyan niḥ śroṇo bhūt ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अ॒भि । ऊ॒र्णो॒ति॒ । यत् । न॒ग्नम् । भि॒षक्ति॑ । विश्व॑म् । यत् । तु॒रम् । प्र । ई॒म् । अ॒न्धः । ख्य॒त् । निः । श्रो॒णः । भू॒त् ॥ ८.७९.२

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:79» मन्त्र:2 | अष्टक:6» अध्याय:5» वर्ग:33» मन्त्र:2 | मण्डल:8» अनुवाक:8» मन्त्र:2


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शिव शंकर शर्मा

पदार्थान्वयभाषाः - (यवयुः) जौ, गेहूँ, मसूर आदि चाहनेवाला (गव्युः) गो, महिष, अजा आदि पशुकामी (हिरण्ययुः) सोना, चान्दी आदि धातुओं का अभिलाषी (अश्वयुः) घोड़ा, हाथी आदि वाहनाभिलाषी (मम+कामः) मेरा काम (त्वाम्+इत्) तुझको ही अन्य को नहीं किन्तु (त्वाम्) तुझको ही (एषते) चाहता है ॥९॥
भावार्थभाषाः - हम लोगों की इच्छा सब पदार्थ चाहती है, यह मनुष्य का स्वाभाविक गुण है ॥९॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

'नग्न- तुर - अन्ध व श्रोण' प्रभुकृपा से कृपा बन जाते हैं ?

पदार्थान्वयभाषाः - [१] गतमन्त्र में वर्णित सोम शरीर में सुरक्षित होकर हमें उस महान् सोम [प्रभु] की कृपा का पात्र बनाता है (यत्) = जो ब्रह्म (नग्नं अभ्यर्णोति) = नग्न को वस्त्रों से आच्छादित करता है, (यत्) = जो (विश्वम्) = सब (तुरम्) = रोगहिंसित पुरुष को (भिषक्ति) = चिकित्सित करता है। [२] उस प्रभु के अनुग्रह से शरीर में सोम के पूर्णरूप से सुरक्षित होने पर (अन्धः) = अन्धा भी (इम्) = निश्चय से (प्र ख्यत्) = देखता है और (श्रोणः) = पंगु भी (निः भूत्) = घर से बाहर जानेवाला बनता है, अर्थात् प्रभु के अनुग्रह से सुरक्षित सोम दृष्टिशक्ति व चलने की शक्ति प्राप्त कराता है।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- प्रभु का अनुग्रह नग्न को वस्त्रों से आच्छादित करता है, रोगी को नीरोग बनाता है, अन्धे को देखनेवाला और लंगड़े को खूब चलनेवाला बनाता है।
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शिव शंकर शर्मा

पदार्थान्वयभाषाः - यवयुः=यवगोधूमाभिलाषी। गव्युः=गोपशुकाङ्क्षी। हिरण्ययुः=हिरण्याभिलाषी। अश्वयुः=अश्वादिपशुकामी। मम+कामः+त्वामित्=त्वामेव। त्वामेव। एषते=कामयते ॥९॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Soma that clothes the naked, cures all the sick and suffering of the world, gives eyes to the blind to see and legs to the lame to walk.