अ॒यमिन्द्रो॑ म॒रुत्स॑खा॒ वि वृ॒त्रस्या॑भिन॒च्छिर॑: । वज्रे॑ण श॒तप॑र्वणा ॥
अंग्रेज़ी लिप्यंतरण
मन्त्र उच्चारण
ayam indro marutsakhā vi vṛtrasyābhinac chiraḥ | vajreṇa śataparvaṇā ||
पद पाठ
अ॒यम् । इन्द्रः॑ । म॒रुत्ऽस॑खा । वि । वृ॒त्रस्य॑ । अ॒भि॒न॒त् । शिरः॑ । वज्रे॑ण । श॒तऽप॑र्वणा ॥ ८.७६.२
ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:76» मन्त्र:2
| अष्टक:6» अध्याय:5» वर्ग:27» मन्त्र:2
| मण्डल:8» अनुवाक:8» मन्त्र:2
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शिव शंकर शर्मा
पदार्थान्वयभाषाः - हे भगवन् ! (परस्याः) अन्य (संवतः) चोर डाकू आदिकों की सभा को (अधि) छोड़ और नष्ट कर। (अवरान्) तेरे अधीन हम लोगों की (अभ्यातर) ओर आ और (यत्र+अहं+अस्मि) मैं उपासक होऊँ। (तान्+अव) उनकी सहायता कर ॥१५॥
भावार्थभाषाः - जहाँ पर ईश्वरभक्त ऋषिगण विराजमान होते हैं, वहाँ अवश्य कल्याण होता है ॥१५॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार
मरुत्सखा इन्द्रः
पदार्थान्वयभाषाः - [१] (अयं इन्द्रः) = यह जितेन्द्रिय पुरुष (मरुत्सखा) = प्राणों को मित्ररूप में पानेवाला होकर [मरुतः सखायो यस्य], अर्थात् प्राणसाधना के द्वारा (वृत्रस्य) = ज्ञान की आवरणभूत वासना के (शिरां वि अभिनत्) = सिर को विदीर्ण कर देता है। प्राणसाधना के द्वारा वासना का विनाश करता है। [२] यह इन्द्र (शतपर्वणा) = [ पर्व = to fill ] सौ वर्ष तक जीवन को भरनेवाले, अर्थात् आजीवन चलनेवाले (वज्रेण) = क्रियाशीलतारूप वज्र के द्वारा वासना को विनष्ट करता है। गतिशीलता उसे वासना का शिकार होने से बचाती है।
भावार्थभाषाः - भावार्थ - एक जितेन्द्रिय पुरुष प्राणसाधना को करता हुआ वासना को विनष्ट करता है। सौ वर्ष तक इसका जीवन गतिशील बना रहता है।
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शिव शंकर शर्मा
पदार्थान्वयभाषाः - हे भगवन् ! परस्याः=अन्यस्याः। संवतः=लुण्ठकादीनां सभा। अधि=वर्जयित्वा। अवरान्=तवाधीनान् अस्मान्। अभ्यातर=आगच्छ। यत्र=येषु मनुष्येषु। अहमस्मि। तान् अव=रक्ष ॥१५॥
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डॉ. तुलसी राम
पदार्थान्वयभाषाः - This Indra, friend of winds and pranic energies, with hundred-fold discipline of spiritual power like the thunderbolt can destroy the dominating shadows of the evil of darkness and ignorance on way to the soul’s enlightenment.
