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कमु॑ ष्विदस्य॒ सेन॑या॒ग्नेरपा॑कचक्षसः । प॒णिं गोषु॑ स्तरामहे ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

kam u ṣvid asya senayāgner apākacakṣasaḥ | paṇiṁ goṣu starāmahe ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

कम् । ऊँ॒ इति॑ । स्वि॒त् । अ॒स्य॒ । सेन॑या । अ॒ग्नेः । अपा॑कऽचक्षसः । प॒णिम् । गोषु॑ । स्त॒रा॒म॒हे॒ ॥ ८.७५.७

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:75» मन्त्र:7 | अष्टक:6» अध्याय:5» वर्ग:25» मन्त्र:2 | मण्डल:8» अनुवाक:8» मन्त्र:7


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शिव शंकर शर्मा

पदार्थान्वयभाषाः - (अयम्+अग्निः) यह सर्वत्र प्रसिद्ध जगदाधार जगदीश (शतिनः) शत संख्याओं से युक्त (सहस्रिणः) सहस्र पदार्थों से युक्त (वाजस्य) धन और विज्ञान का पति है। (रयीणाम्) सर्व प्रकार की सत्ताओं का भी वही अधिपति है और (मूर्धा) सम्पूर्ण जगत् का शिर और (कविः) परम विज्ञानी है ॥४॥
भावार्थभाषाः - जो परमात्मा सम्पूर्ण ज्ञान और धन का अधिपति है, वह हमको धन और ज्ञान दे ॥४॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

पणिस्तरण

पदार्थान्वयभाषाः - [१] (अस्य) = इस (अपाकचक्षसः) = अनल्प ज्ञानवाले-सर्वज्ञ (अग्नेः) = प्रकाशमय प्रभु की (सेनया) = [सह इनेन प्रभुणा] सेना से नेतृत्व शक्ति से (कम् उ स्वित्) = किसी भी अधिक से- अधिक शक्तिशाली भी (पणिं) = कृपणता व अपवित्रता की भावना को (गोषु) = ज्ञान की वाणियों के होने पर (स्तरामहे) = विनष्ट करते हैं। [२] प्रभु पूर्ण ज्ञानवाले हैं। उनकी प्रेरणा में चलते हुए हम ज्ञान का वर्धन कर पाते हैं। यह ज्ञान हमें कृपणता से ऊपर उठाकर पवित्र बना देता है।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- हम सर्वज्ञ प्रभु की प्रेरणा में चलें। इस प्रकार हम कृपणता व अपवित्रता को विनष्ट करके ज्ञानोज्ज्वल जीवनवाले बनेंगे।
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शिव शंकर शर्मा

पदार्थान्वयभाषाः - अयमग्निः शतिनः सहस्रिणश्चोक्तसंख्योपेतस्य वाजस्यान्नस्य पतिः स्वामी मूर्धा शिरोवदुन्नतः श्रेष्ठः कविर्मेधावी। रयीणां=धनानामपि पतिरिति शेषः। तदुभयं प्रयच्छत्वित्यर्थः ॥४॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Shall we overcome and throw out the thief hiding within our lands and cows by the force of this all watching Agni of far sighted vision?