पर॑स्या॒ अधि॑ सं॒वतोऽव॑राँ अ॒भ्या त॑र । यत्रा॒हमस्मि॒ ताँ अ॑व ॥
अंग्रेज़ी लिप्यंतरण
मन्त्र उच्चारण
parasyā adhi saṁvato varām̐ abhy ā tara | yatrāham asmi tām̐ ava ||
पद पाठ
पर॑स्याः । अधि॑ । स॒म्ऽवतः॑ । अव॑रान् । अ॒भि । आ । त॒र॒ । यत्र॑ । अ॒हम् । अस्मि॑ । तान् । अ॒व॒ ॥ ८.७५.१५
ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:75» मन्त्र:15
| अष्टक:6» अध्याय:5» वर्ग:26» मन्त्र:5
| मण्डल:8» अनुवाक:8» मन्त्र:15
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शिव शंकर शर्मा
पदार्थान्वयभाषाः - हे ईश ! (अस्मिन्+महाधने) इस नाना धनयुक्त संसार में (नः) हम लोगों को असहाय (मा+परा+वर्क्) मत छोड़, यथा जैसे (भारभृत्) भारवाही भार को त्यागता है, तद्वत्, किन्तु (संवर्गं) अच्छिद्यमान अर्थात् चिरस्थायी (रयिं) मुक्तरूप धन (संजय) दे ॥१२॥
भावार्थभाषाः - महाधन=इस संसार में जिस ओर देखते हैं, सम्पत्तियों का अन्त नहीं पाते, तथापि मनुष्य अज्ञानवश दुर्नीति के कारण दुःख पा रहा है, इससे ईश्वर इसकी रक्षा करे ॥१२॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार
वह तारक प्रभु
पदार्थान्वयभाषाः - [१] हे प्रभो ! (परस्याः संवतः अधि) = अत्यन्त दूर के वर्षों से, अर्थात् सदा से (अवरान्) = आपके छोटे सखारूप हम जीवों को आप (अभ्यातर) इस संसार समुद्र से तराने का अनुग्रह करिये। आपके अनुग्रह से हम सांसारिक विषयों में न फँसकर इस भवसागर से उत्तीर्ण हो सकें। [२] हे प्रभो ! (यत्र अहं अस्मि) = जिस भी परिवार, समाज व देश में मैं हूँ, (तान् अव) = उन सबका आप रक्षण करिये। आपकी शक्ति से शक्तिसम्पन्न होकर मैं सभी का रक्षण करनेवाला बनूँ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- हे प्रभो ! आप ही सनातन काल से हम सखाओं को इस भवसागर से तरानेवाले हैं। आप से शक्ति प्राप्त करके हम सभी का हित करनेवाले बनें।
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शिव शंकर शर्मा
पदार्थान्वयभाषाः - हे ईश ! अस्मिन् महाधने=संसारे। नः=अस्मान्। असहायान्। मा+परा+वर्क्=मा त्याक्षीः। यथा भारभृद् भारं त्यजति तद्वत्। त्वं संवर्गं=अच्छिद्यमानम्। रयिं=नित्यधनम्। सं+जय=देहि ॥१२॥
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डॉ. तुलसी राम
पदार्थान्वयभाषाः - Prior and in preference to the forces of the proud and high, come and help the humble and the lowly where I, too, abide better in the spirit than in the pride of power.
