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कु॒वित्सु नो॒ गवि॑ष्ट॒येऽग्ने॑ सं॒वेषि॑षो र॒यिम् । उरु॑कृदु॒रु ण॑स्कृधि ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

kuvit su no gaviṣṭaye gne saṁveṣiṣo rayim | urukṛd uru ṇas kṛdhi ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

कु॒वित् । सु । नः॒ । गोऽइ॑ष्टये । अग्ने॑ । स॒म्ऽवेषि॑षः । र॒यिम् । उरु॑ऽकृत् । उ॒रु । नः॒ । कृ॒धि॒ ॥ ८.७५.११

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:75» मन्त्र:11 | अष्टक:6» अध्याय:5» वर्ग:26» मन्त्र:1 | मण्डल:8» अनुवाक:8» मन्त्र:11


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शिव शंकर शर्मा

पदार्थान्वयभाषाः - (देवानां) सूर्य्य, चन्द्र, अग्नि आदि देवों से सुरचित और सुरक्षित (विशः) प्रजागण (नः) हम लोगों को (मा हासुः) मत त्यागें। यहाँ दो दृष्टान्त कहते हैं। (इव) जैसे (प्रस्नातीः) शीतलता और प्रकाश को फैलाती हुई (उस्राः) उषाएँ जीवों को नहीं त्यागतीं और जैसे (अघ्न्याः) अहन्तव्या गाएँ (कृशं) अपने वत्सगण को (न+हासुः) नहीं त्यागतीं ॥८॥
भावार्थभाषाः - हम मनुष्य वैसा शुद्धाचरण सत्यग्रहण कपटादिदोषराहित्य तथा ईश्वर की आराधनादि सद्गुण उपार्जन करें, जिससे सज्जनगण हमको न त्यागें ॥८॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

गविष्टये

पदार्थान्वयभाषाः - [१] हे (अग्ने) = परमात्मन्! आप (नः) = हमारे लिए (गविष्टये) = गौओं के ज्ञानवाणियों के (एषण) = [प्राप्ति] के निमित्त (कुवित्) = खूब ही (रयिं) = धन को (सु) = अच्छी प्रकार (संवेषिणः) = प्राप्त कराइये। प्रभु हमें धन दें। हम उस धन का विनियोग ज्ञान के साधनों को जुटाने में करें। धन भोग साधनों को जुटाने में ही व्ययित न हो। [२] हे प्रभो ! आप (उरुकृतः) = खूब ही धनों को करनेवाले हैं। (नः) = हमारे लिए (उरुकृधि) = खूब ही धन को करिये। आपकी कृपा से हम खूब धन को प्राप्त कर सकें।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- प्रभु हमारे लिए खूब ही धन को प्राप्त करायें। यह धन ज्ञान प्राप्ति के साधनों को जुटाने में व्ययित हो ।
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शिव शंकर शर्मा

पदार्थान्वयभाषाः - देवानां=सर्वेषां पदार्थानां मध्ये। विशः=निखिल-विज्ञानेषु प्रवेशकारिणः। नः=अस्मान्। मा हासुः=प्रभुर्मा त्यजतु। अत्र दृष्टान्तद्वयम्। प्रस्नातीः=दुग्धं स्रवन्त्यः। उस्राः+इव=गाव इव तथा। अघ्न्याः=गावः। न=यथा। कृशं=वत्सम्। न+हासुः=न त्यजन्ति ॥८॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Agni, refulgent lord, give us ample and high quality wealth for the development and expansion of our lands and cows, and let us too vastly expand and highly rise in life.