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सा द्यु॒म्नैर्द्यु॒म्निनी॑ बृ॒हदुपो॑प॒ श्रव॑सि॒ श्रव॑: । दधी॑त वृत्र॒तूर्ये॑ ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

sā dyumnair dyumninī bṛhad upopa śravasi śravaḥ | dadhīta vṛtratūrye ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

सा । द्यु॒म्नैः । द्यु॒म्निनी॑ । बृ॒हत् । उप॑ऽउप । श्रव॑सि । श्रवः॑ । दधी॑त । वृ॒त्र॒ऽतूर्ये॑ ॥ ८.७४.९

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:74» मन्त्र:9 | अष्टक:6» अध्याय:5» वर्ग:22» मन्त्र:4 | मण्डल:8» अनुवाक:8» मन्त्र:9


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शिव शंकर शर्मा

पदार्थान्वयभाषाः - (सबाधः) विविधरोग-शोकादि-बाधासहित अतएव (जुह्वानासः) याग आदि शुभकर्मों को करते हुए और (यतस्रुचः) स्रुवा शाकल्य आदि साधनों से सम्पन्न होकर (इमे+जनाः) ये मनुष्य (यम्+अग्निम्) जिस सर्वाधार परमात्मा की (हव्येभिः) प्रार्थनाओं से (ईळते) स्तुति करते हैं, उसकी प्रार्थना हम सब करें ॥६॥
भावार्थभाषाः - परमात्मा की प्रार्थना से निखिल बाधाएँ दूर होती हैं, अतः हे मनुष्यों ! अग्निहोत्रादि शुभकर्म करते हुए उसकी कीर्ति का गान करो ॥६॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

घुम्नैः द्युम्निनी

पदार्थान्वयभाषाः - [१] (सा) = वह प्रभु के लिए की जानेवाली स्तुति (घुम्नैः द्युम्निनी) = ज्ञानज्योतियों से ज्योतिर्मयी हो । स्तुति से हमारा हृदय प्रकाशमय बने। [२] यह स्तुति (वृत्रतूर्ये) = वासना के विनाश के निमित्त हमारे (श्रवसि) = कान में (बृहत् श्रवः) = खूब ज्ञान को (उप उप दधीत) = समीपता से धारण करे। हम ज्ञान की वाणियों का श्रवण करते हुए प्रकाशमय जीवनवालें बनें। इस प्रकाश में वासनाओं के अन्धकार का विलय हो जाए।
भावार्थभाषाः - भावार्थ-स्तुति हमारे जीवन को प्रकाशमय बनायें। इस प्रकाश में वासना का विलय हो जाए।
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शिव शंकर शर्मा

पदार्थान्वयभाषाः - सबाधः=बाधेन सहिताः। जुह्वानासः=यागादिशुभकर्माणि साधयन्तः। यतस्रुचः=स्रुगादिसाधनसम्पन्नाः। इमे+जनाः= यमग्निम्। हव्येभिः=प्रार्थनादिभिः। ईळते=स्तुवन्ति ॥६॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - That light and power, splendid and boundless with the might and majesty of divinity, may bear greater and greater potential closer and closer to us in the progressive task of the elimination of darkness and evil.