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दु॒हन्ति॑ स॒प्तैका॒मुप॒ द्वा पञ्च॑ सृजतः । ती॒र्थे सिन्धो॒रधि॑ स्व॒रे ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

duhanti saptaikām upa dvā pañca sṛjataḥ | tīrthe sindhor adhi svare ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

दु॒हन्ति॑ । स॒प्त । एका॑म् । उप॑ । द्वा । पञ्च॑ । सृ॒ज॒तः॒ । ती॒र्थे । सिन्धोः॑ । अधि॑ । स्व॒रे ॥ ८.७२.७

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:72» मन्त्र:7 | अष्टक:6» अध्याय:5» वर्ग:15» मन्त्र:2 | मण्डल:8» अनुवाक:8» मन्त्र:7


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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

दुहन्ति सप्त एकाम्

पदार्थान्वयभाषाः - [१] गतमन्त्र के अनुसार शरीररथ का ठीक से योजन होने पर (सप्त) = शरीररथ सात ऋषि 'कर्णाविमौ नासिके चक्षणी मुखम्' कर्ण आदि (एकाम्) = इस अद्वितीय वेदधेनु का (दुहन्ति) = दोहन करते हैं। सातों इन्द्रियाँ ज्ञान को प्राप्त करानेवाली होती हैं। [२] वेदधेनु का दोहन होने पर इस समय (द्वा) = दो-प्राण और अपान (पञ्च) = पाँच ज्ञानेन्द्रियों को (सिन्धोः) = ज्ञानसमुद्र के (तीर्थे) = घाट पर (स्वरे अधि) =‍ उस स्वयं राजमान प्रभु के (उपसृजतः) = समीप संसृष्ट करते है । प्राणसाधना के द्वारा इन्द्रियाँ, विषयों में न जाकर प्रभुप्रवण होती हैं।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- हम कान आदि के द्वारा ज्ञान का वर्धन करें। प्राणसाधना द्वारा इन्द्रियों को प्रभुप्रवण करें।
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Five senses of perception alongwith two others, mind and intelligence (i.e., mana and buddhi), at work distill the power and glory of Agni, like seven milk maids milking one cow on the bank of a sacred river, and give it expression in the resounding notes of cosmic hymns.