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स नो॒ वस्व॒ उप॑ मा॒स्यूर्जो॑ नपा॒न्माहि॑नस्य । सखे॑ वसो जरि॒तृभ्य॑: ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

sa no vasva upa māsy ūrjo napān māhinasya | sakhe vaso jaritṛbhyaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

सः । नः॒ । वस्वः॑ । उप॑ । मा॒सि॒ । ऊर्जः॑ । नपा॑त् । माहि॑नस्य । सखे॑ । व॒सो॒ इति॑ । ज॒रि॒तृऽभ्यः॑ ॥ ८.७१.९

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:71» मन्त्र:9 | अष्टक:6» अध्याय:5» वर्ग:12» मन्त्र:4 | मण्डल:8» अनुवाक:8» मन्त्र:9


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शिव शंकर शर्मा

परमानन्द की प्राप्ति के लिये यह प्रार्थना है।

पदार्थान्वयभाषाः - (अग्ने) हे सर्वाधार परमदेव ! (त्वम्) तू (दाशुषे+मर्ताय) परमोदार मनुष्य को (पुरुवीरम्+रयिम्) बहुत वीरों से संयुक्त सम्पत्तियाँ देता है। हे ईश ! (नः) हमको (वस्यः) परमानन्द की (अच्छ) ओर (प्र+नय) ले चल ॥६॥
भावार्थभाषाः - वस्यः=जो आनन्द सर्वत्र व्यापक है, वह मुक्तिरूप सुख है। उसी की ओर लोगों को जाना चाहिये। वह इस लोक में भी विद्यमान है, परन्तु उसको केवल विद्वान् ही अनुभव कर सकता है ॥६॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

'माहिनस्य वस्वः' उपमासि

पदार्थान्वयभाषाः - [१] हे (ऊर्जा नपात्) = शक्ति को न गिरने देनेवाले प्रभो ! (सः) = वे आप (नः) = हमारे लिए (माहिनस्य) = महत्त्वपूर्ण - हमारे जीवन को महनीय बनानेवाले (वस्वः) = धन को (उपमासि) = समीप निमत करते हैं अर्थात् प्राप्त कराते हैं। [२] हे (सखे) = मित्र (वसो) = सबको बसानेवाले प्रभो ! (जरितृभ्यः) = स्तोताओं के लिए आप धन को प्राप्त कराते हैं।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- प्रभु स्तोता को महनीय धन प्राप्त कराते हैं, वह धन जो उसे शक्ति से भ्रष्ट नहीं होने देता ।
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शिव शंकर शर्मा

परमानन्दप्राप्तये प्रार्थनेयम्।

पदार्थान्वयभाषाः - हे अग्ने ! त्वम्। दाशुषे=परमोदाराय। मर्ताय। पुरुवीरम्=बहुवीरोपेतं रयिं सम्पत्तिम्। ददासि। हे ईश ! नोऽस्मान्। वस्यः=वसीयः। परमानन्दम्। अच्छ=अभि। प्र+नय ॥६॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Agni, creator and treasure home of the world, infinite energy, giver of peace and settlement, universal friend, give us wealth as well as honour and glory for the celebrants.