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अ॒ग्निरि॒षां स॒ख्ये द॑दातु न॒ ईशे॒ यो वार्या॑णाम् । अ॒ग्निं तो॒के तन॑ये॒ शश्व॑दीमहे॒ वसुं॒ सन्तं॑ तनू॒पाम् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

agnir iṣāṁ sakhye dadātu na īśe yo vāryāṇām | agniṁ toke tanaye śaśvad īmahe vasuṁ santaṁ tanūpām ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अ॒ग्निः । इ॒षाम् । स॒ख्ये । द॒दा॒तु॒ । नः॒ । ईशे॑ । यः । वार्या॑णाम् । अ॒ग्निम् । तो॒के । तन॑ये । शश्व॑त् । ई॒म॒हे॒ । वसु॑म् । सन्त॑म् । त॒नू॒ऽपाम् ॥ ८.७१.१३

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:71» मन्त्र:13 | अष्टक:6» अध्याय:5» वर्ग:13» मन्त्र:3 | मण्डल:8» अनुवाक:8» मन्त्र:13


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शिव शंकर शर्मा

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यों ! (नः) हम लोगों की स्तुति प्रार्थना और विनयवाक्य (अच्छ) उस ईश्वर की ओर जाएँ, (शीरशोचिषम्) जिसका तेज सर्वत्र व्याप्त है और जो (दर्शतम्) परम दर्शनीय है तथा (यज्ञासः) हमारे सर्व यज्ञादि शुभकर्म (नमसा) आदर के साथ (अच्छ) उस परम पिता की ओर जाएँ, जो ईश (पुरुवसुम्) समस्त सम्पत्तियों का स्वामी है और (ऊतये) अपनी-अपनी रक्षा और साहाय्य के लिये (पुरुप्रशस्तम्) जिसकी स्तुति सब करते हैं ॥१०॥
भावार्थभाषाः - हमारे जितने शुभकर्म धन और पुत्रादिक हों, वे सब ईश्वर के लिये ही होवें ॥१०॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

वसुं सन्तं तनूपाम्

पदार्थान्वयभाषाः - [१] (अग्निः) = वह अग्रणी प्रभु (सख्ये) = मित्रभूत जीव के लिए (इषां ददातु) = प्रेरणा को प्राप्त कराएँ। प्रभु की प्रेरणा ही हमें जीवनमार्ग से भ्रष्ट होने से बचाएगी। वे प्रभु (यः) = जो (नः) = हमारे लिए (वार्याणाम्) = वरणीय वस्तुओं के ईशे ईश हैं । [२] (अग्निं) = उस अग्रणी प्रभु को (तोके) = पुत्रों के निमित्त तथा (तनये) = पौत्रों के निमित्त (शश्वद्) = सदा (ईमहे) = याचना करते हैं। उस प्रभु को जो (वसुं) = सबको बसानेवाले हैं । (सन्तम्) = सत् हैं तथा (तनूपाम्) = हमारे शरीरों का रक्षण करनेवाले हैं।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- प्रभु हमें प्रेरणा देते हैं, वरणीय धनों को प्राप्त कराते हैं, पुत्रों व पौत्रों का रक्षण करते हैं, बसानेवाले हैं, सत् हैं और हमारे शरीरों का रक्षण करनेवाले हैं।
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शिव शंकर शर्मा

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्याः ! नोऽस्माकम्। गिरः। ऊतये=रक्षायै तमग्निम्। अच्छ=अभिलक्ष्य। यन्तु। एवमेव। यज्ञासः=यज्ञाः। नमसा=सत्कारेण सह। तमच्छ यन्तु। कीदृशं तम्। शीरशोचिषम्=व्याप्ततेजस्कम्। पुनः। दर्शतं=दर्शनीयम्। पुरुवसुम्=बहुधनम्। पुरुप्रशस्तम्=बहुभिः प्रशंसनीयम् ॥१०॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - May Agni as a friend give us food and energy for sustenance since he rules over all the wealth and powers of the world. We always serve and pray to Agni for our children and grand children, he being the universal giver of home and settlement as well as the protector and sustainer of our body’s health.