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आ प॑प्राथ महि॒ना वृष्ण्या॑ वृष॒न्विश्वा॑ शविष्ठ॒ शव॑सा । अ॒स्माँ अ॑व मघव॒न्गोम॑ति व्र॒जे वज्रि॑ञ्चि॒त्राभि॑रू॒तिभि॑: ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ā paprātha mahinā vṛṣṇyā vṛṣan viśvā śaviṣṭha śavasā | asmām̐ ava maghavan gomati vraje vajriñ citrābhir ūtibhiḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

आ । प॒प्रा॒थ॒ । म॒हि॒ना । वृष्ण्या॑ । वृ॒ष॒न् । विश्वा॑ । श॒वि॒ष्ठ॒ । शव॑सा । अ॒स्मान् । अ॒व॒ । म॒घ॒ऽव॒न् । गोऽम॑ति । व्र॒जे । वज्रि॑न् । चि॒त्राभिः॑ । ऊ॒तिऽभिः॑ ॥ ८.७०.६

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:70» मन्त्र:6 | अष्टक:6» अध्याय:5» वर्ग:9» मन्त्र:1 | मण्डल:8» अनुवाक:8» मन्त्र:6


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शिव शंकर शर्मा

पदार्थान्वयभाषाः - (तम्) उस ईश्वरोपासक की तुलना (कर्मणा) कर्म द्वारा (नकिः+नशत्) कोई भी नहीं कर सकता, जो जन (यज्ञैः) शुभकर्म द्वारा (इन्द्रम्+न) परमात्मा को ही (चकार) अपने अनुकूल बनाता है। जो इन्द्र (सदावृधम्) सदा धनों जनों को बढ़ानेवाला है। (विश्वगूर्तम्) सबका गुरु वा पूज्य (ऋभ्वसम्) महान् व्यापक (अधृष्टम्) अधर्षणीय है और (धृष्ण्वोजसम्) जिसका बल जगत् को कँपानेवाला है ॥३॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

शवसा आपप्राथ

पदार्थान्वयभाषाः - [१] हे (वृषन्) = सुखों का वर्षण करनेवाले (शविष्ठ) = अतिशयेन शक्तिशालिन् प्रभो ! आप (वृष्ण्या) = सुखों का वर्षण करनेवाली (महिना) = अपनी महिमा से (विश्वा) = सबको (शवसा) = बल से (आपप्राथ) = आपूरित करते हैं। प्रभु का जो भी धारण करता है, वह प्रभु की शक्ति से शक्तिसम्पन्न बनता है। [२] हे (वज्रिन्) = वज्रहस्त (मघवन्) = ऐश्वर्यशालिन् प्रभो ! (अस्मान्) = हमें (गोमति व्रजे) = इस इन्द्रियरूप गौओंवाले शरीररूप बाड़े में (चित्राभिः ऊतिभिः) = अद्भुत रक्षणों के द्वारा (अव) = रक्षित करिये।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- प्रभु ही हमें शक्ति से प्रपूरित करते हैं। प्रभु के अनुग्रह से हमारा प्रशस्त इन्द्रियरूप गौवोंवाला होता है।
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शिव शंकर शर्मा

पदार्थान्वयभाषाः - तमीश्वरभक्तम्। नकिः=न कश्चिदपि पुरुषः। कर्मणा=स्वव्यापारेण। नशत्=प्राप्तुं शक्नोति। यः पुरुषः। यज्ञैः=शुभकर्मभिः। इन्द्रं+न=इन्द्रमेव। चकार=विवशं चकार। कीदृशम्। सदावृधम्=सदावर्धकम्। विश्वगूर्तम्=विश्वगुरुं विश्वपूजितं वा। ऋभ्वसम्। महान्तम्। अधृष्टम्=अधर्षणीयम्। पुनः धृष्ण्वोजसम्=धर्षकबलम् ॥३॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - O lord of the thunderbolt, master and controller of world’s wealth, honour and power, most potent and lord of showers of generosity, with your generous and creative power and grandeur you pervade the universe. Pray protect, guide and promote us by your various and wondrous modes of protection and progress in our search for development of lands and cows, knowledge, language and culture.