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नकि॒ष्टं कर्म॑णा नश॒द्यश्च॒कार॑ स॒दावृ॑धम् । इन्द्रं॒ न य॒ज्ञैर्वि॒श्वगू॑र्त॒मृभ्व॑स॒मधृ॑ष्टं धृ॒ष्ण्वो॑जसम् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

nakiṣ ṭaṁ karmaṇā naśad yaś cakāra sadāvṛdham | indraṁ na yajñair viśvagūrtam ṛbhvasam adhṛṣṭaṁ dhṛṣṇvojasam ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

नकिः॑ । तम् । कर्म॑णा । न॒श॒त् । यः । च॒कार॑ । स॒दाऽवृ॑धम् । इन्द्र॑म् । न । य॒ज्ञैः । वि॒श्वऽगू॑र्तम् । ऋभ्व॑सम् । अधृ॑ष्टम् । धृ॒ष्णुऽओ॑जसम् ॥ ८.७०.३

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:70» मन्त्र:3 | अष्टक:6» अध्याय:5» वर्ग:8» मन्त्र:3 | मण्डल:8» अनुवाक:8» मन्त्र:3


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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

नकिः तं कर्मणा नशत्

पदार्थान्वयभाषाः - [१] (तं) = उस व्यक्ति को (कर्मणा) = कर्मों से (नकिः नशत्) = कोई भी व्याप्त नहीं कर पाता, अर्थात् उसके समान कोई भी महान् कर्मों को नहीं कर पाता, (यः) = जो (सदावृधं) = सदा से वर्धमान प्रभु को (चकार) = अपने अन्दर कराता है, अर्थात् जो प्रभु को अपने में धारण करता है। इस स्तोता को प्रभु की शक्ति प्राप्त होती है-इसके अन्दर प्रभु की शक्ति ही कार्य कर रही होती है। [२] (न) = [संप्रति] अब हम (यज्ञैः) = यज्ञात्मक कर्मों से (इन्द्रं) = उस प्रभु को ही उपासित करें, जो प्रभु (विश्वगूर्तम्) = सबसे स्तुति के योग्य हैं, (ऋभ्वसं) = महान् हैं। (अधृष्टं) = किसी से भी धूषत होनेवाले नहीं और (ओजसा) = ओजस्विता के द्वारा (धृष्ण्वम्) = सब शत्रुओं का धर्षण करनेवाले हैं।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- प्रभु की उपासना हमें असाधारण [महान्] कार्यों को करने में समर्थ करेगी। प्रभु की शक्ति से शक्तिसम्पन्न होकर हम सब शत्रुओं का धर्षण कर पाएँगे।
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - No one can equal merely by action, much less hurt even by yajnas, that person who has won the favour and grace of Indra, lord divine who is rising as well as raising his devotees high, who is universally adored, universal genius, redoubtable and invincibly illustrious.