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वप॑न्ति म॒रुतो॒ मिहं॒ प्र वे॑पयन्ति॒ पर्व॑तान् । यद्यामं॒ यान्ति॑ वा॒युभि॑: ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

vapanti maruto miham pra vepayanti parvatān | yad yāmaṁ yānti vāyubhiḥ ||

पद पाठ

वप॑न्ति । म॒रुतः॑ । मिह॑म् । प्र । वे॒प॒य॒न्ति॒ । पर्व॑तान् । यत् । याम॑म् । यान्ति॑ । वा॒युऽभिः॑ ॥ ८.७.४

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:7» मन्त्र:4 | अष्टक:5» अध्याय:8» वर्ग:18» मन्त्र:4 | मण्डल:8» अनुवाक:2» मन्त्र:4


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शिव शंकर शर्मा

वायु का महत्त्व दिखलाते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - (यद्) जब (मरुतः) झञ्झावायु=आँधी तूफान (वायुभिः) सामान्य व्यापक वायुओं के साथ (यामम्+यान्ति) गति करता है, तब (मिहम्) वृष्टि को (वपन्ति) इधर-उधर कर फार देता है और (पर्वतान्) पहाड़ों और मेघों को (प्र+वेपयन्ति) हिला देता है ॥४॥
भावार्थभाषाः - जैसे बाह्य वायु का उपद्रव हम देखते हैं, तद्वत् इस शरीरस्थ वायु का भी है। उसकी शान्ति केवल प्राणायाम और चित्तैकाग्रता से होती है, अन्यथा मनुष्य की बुद्धि स्थिर नहीं होती ॥४॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (यत्) जब (वायुभिः) सेनासहित (मरुतः) योद्धा लोग (यामम्, यान्ति) यानारूढ होते हैं, तब (मिहम्, वपन्ति) शस्त्रवृष्टि करते हैं और (पर्वतान्) दुर्गप्रदेशों को (प्रवेपयन्ति) कँपा देते हैं ॥४॥
भावार्थभाषाः - जो लोग व्योमयानादि द्वारा=विद्यानिर्मित यानों द्वारा शत्रु पर आक्रमण करते हैं, वे ही शत्रुबल को कम्पायमान कर सकते हैं, अन्य नहीं ॥४॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

मिहं वपन्ति, पर्वतान् प्रवेपयन्ति

पदार्थान्वयभाषाः - [१] (यद्) = जब (वायुभिः) = इन प्राणों के द्वारा (यामं यान्ति) = जितेन्द्रियता को [याम control] प्राप्त करते हैं, तो (मरुतः) = ये प्राणसाधना करनेवाले पुरुष (मिहं वपन्ति) = अंग-प्रत्यंग में शक्ति का सेचन करते हैं और (पर्वतान् प्रवेपयन्ति) = अविद्या पर्वतों को कम्पित करके दूर करते हैं। [२] प्राणसाधना हमें इन्द्रियों को वशीभूत करने में समर्थ करती है। यह जितेन्द्रियता सोम का रक्षण करती है। सोमरक्षण से शरीर शक्ति सम्पन्न बनता है तो मस्तिष्क का अज्ञानान्धकार नष्ट हो जाता है।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- प्राणसाधना द्वारा जितेन्द्रिय बनकर हम सोमरक्षण करते हुए शरीर को शक्ति-सम्पन्न तथा मस्तिष्क को ज्ञानदीप्त बनाते हैं।
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शिव शंकर शर्मा

मरुन्महत्त्वं दर्शयति।

पदार्थान्वयभाषाः - प्रसङ्गाद् बाह्यवायूपद्रवं दर्शयति। मरुतः। मिहम्=वृष्टिम्। वपन्ति=विक्षिपन्ति। मिह सेचने। तथा। पर्वतान्=गिरीन् मेघांश्च। प्रवेपयन्ति=प्रकम्पयन्ति। कदेत्याकाङ्क्षायामाह− यद्=यदा। वायुभिः सह। यामम्=गतिम्। यन्ति=कुर्वन्ति ॥४॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (यत्) यदा (वायुभिः) सेनासहिताः (मरुतः) योधाः (यामम्, यान्ति) यानारूढा भवन्ति तदा (मिहम्, वपन्ति) शस्त्रवर्षं मुञ्चन्ति (पर्वतान्) दुर्गप्रदेशांश्च (प्रवेपयन्ति) प्रकम्पयन्ति ॥४॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - When the Maruts take to their vehicles with the winds, they shoot out showers of rain and shake up mountainous strongholds of energy.