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ए॒ताव॑तश्चिदेषां सु॒म्नं भि॑क्षेत॒ मर्त्य॑: । अदा॑भ्यस्य॒ मन्म॑भिः ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

etāvataś cid eṣāṁ sumnam bhikṣeta martyaḥ | adābhyasya manmabhiḥ ||

पद पाठ

ए॒ताव॑तः । चि॒त् । एषाम् । सु॒म्नम् । भि॒क्षे॒त॒ । मर्त्यः॑ । अदा॑भ्यस्य । मन्म॑ऽभिः ॥ ८.७.१५

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:7» मन्त्र:15 | अष्टक:5» अध्याय:8» वर्ग:20» मन्त्र:5 | मण्डल:8» अनुवाक:2» मन्त्र:15


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शिव शंकर शर्मा

आत्मज्ञान से सुख होता है, यह दिखलाते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - (एतावतः+चित्) इस शरीर के बराबर और (अदाभ्यस्य) सदा अविनश्वर आत्मा के (मन्मभिः) मनन, निदिध्यासन और दर्शन से (एषाम्) इन इन्द्रियों का (सुम्नम्) सुख (मर्त्यः+भिक्षेत) उपासक माँगे ॥१५॥
भावार्थभाषाः - आत्मा आत्मा को जाने, तब ही सुख प्राप्त होगा ॥१५॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (अदाभ्यस्य) किसी से भी तिरस्कार करने में अशक्य (एतावतः) इतनी महिमावाले (एषाम्) इन योद्धाओं के (सुम्नम्) सुख को (मर्त्यः) मनुष्य (मन्मभिः) अनेकविध ज्ञानों द्वारा (भिक्षेत) लब्ध करे ॥१५॥
भावार्थभाषाः - जो योधा किसी से तिरस्कृत नहीं होते अर्थात् जो अपने क्षात्रबल में पूर्ण हैं, उन्हीं से अपनी रक्षा की भिक्षा माँगनी चाहिये ॥१५॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

प्राणरक्षण व ज्ञान का मनन

पदार्थान्वयभाषाः - [१] (एतावतः) = इतने से, अर्थात् गतमन्त्र के अनुसार क्योंकि ये मरुत् [प्राण] हमें इन सोमकणों के रक्षण के द्वारा आनन्दित करते हैं, इसलिए (एषाम्) = इन प्राणों के (सुम्नम्) = रक्षण को (भिक्षेत) = माँगे। 'प्राणों का रक्षण हमें प्राप्त हो' ऐसी कामना उपासक करे। [२] (अदाभ्यस्य) = उस अहिंसनीय प्रभु के (मन्मभिः) = दिये गये इन ज्ञानों के साथ हम प्राणों के रक्षण की कामना करें। ये प्रभु से दिये जानेवाले ज्ञान हमें प्राप्त हों। और प्राणायाम द्वारा प्राणों की साधना करते हुए हम अपना रक्षण कर पायें। प्राणसाधना से ही शरीर में सोम का रक्षण होगा। उसके रक्षण से ही सब रक्षणों का सम्भव होगा।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- हम प्राणसाधना करें और प्रभु से दिये गये इन ज्ञानों को प्राप्त करने का प्रयत्न करें।
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शिव शंकर शर्मा

आत्मज्ञानेन सुखं भवतीति दर्शयति।

पदार्थान्वयभाषाः - एतावतश्चित्=इयत्परिमाणस्य=एतद्देहपरिमाणस्य।अदाभ्यस्य=केनापि हिंसितुमशक्यस्य आत्मनः। मन्मभिः=मननैः। मर्त्यः। एषामिन्द्रियाणाम्। सुम्नम्=सुखम्। भिक्षेत=याचेत ॥१५॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (अदाभ्यस्य) केनचिदपि धृष्टुमशक्यानाम् (एतावतः) एतावन्महिम्नाम् (एषाम्) एषां योद्धॄणाम् (सुम्नम्) सुखम् (मर्त्यः) मनुष्यः (मन्मभिः) ज्ञानैः (भिक्षेत) याचेत ॥१५॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - To these warriors of the winds of this high order of indomitable powers, let mortal man pray for peace and joy with thoughts and words of full awareness of the giver and the supplicant.