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देवता: इन्द्र: ऋषि: प्रियमेधः छन्द: बृहती स्वर: मध्यमः

तं घे॑मि॒त्था न॑म॒स्विन॒ उप॑ स्व॒राज॑मासते । अर्थं॑ चिदस्य॒ सुधि॑तं॒ यदेत॑व आव॒र्तय॑न्ति दा॒वने॑ ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

taṁ ghem itthā namasvina upa svarājam āsate | arthaṁ cid asya sudhitaṁ yad etava āvartayanti dāvane ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

तम् । घ॒ । ई॒म् । इ॒त्था । न॒म॒स्विनः॑ । उप॑ । स्व॒ऽराज॑म् । आ॒स॒ते॒ । अर्थ॑म् । चि॒त् । अ॒स्य॒ । सुऽधि॑तम् । यत् । एत॑वे । आ॒ऽव॒र्तय॑न्ति । दा॒वने॑ ॥ ८.६९.१७

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:69» मन्त्र:17 | अष्टक:6» अध्याय:5» वर्ग:7» मन्त्र:7 | मण्डल:8» अनुवाक:7» मन्त्र:17


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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

सुधितम् अर्थम्

पदार्थान्वयभाषाः - [१] (तं स्वराजं) = उस स्वयं देदीप्यमान प्रभु को (इत्था) = सचमुच (घा ईम्) = निश्चय से (नमस्विनः) = नमस्कारवाले (उपासते) = उपासित करते हैं। [२] (अस्य) = इस उपासक का (अर्थं) = प्राप्तव्य धन (चित्) = निश्चय से (सुधितम्) = सम्यक् स्थापित होता है । (यत्) = जो धन (एतवे) = जीवन के कार्यों को संचालित करने के लिए होता है और इस धन को वे दावने हवि आदि के देने के लिए दान के लिए (आवर्तयन्ति) = आवृत्त करते हैं।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- नमन से युक्त होकर हम प्रभु का उपासन करते हैं। प्रभु हमें धन देते हैं। यह धन कार्यसंचालन व दान में विनियुक्त होता है।
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Thus do yajnic and meditative souls holding havis for homage adore and worship self-refulgent Indra when, in order to realise the nature, character and generosity, indeed the very presence of the lord, they turn their self-controlled mind to the Divine Soul in order to reach him.