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वि॒श्वान॑रस्य व॒स्पति॒मना॑नतस्य॒ शव॑सः । एवै॑श्च चर्षणी॒नामू॒ती हु॑वे॒ रथा॑नाम् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

viśvānarasya vas patim anānatasya śavasaḥ | evaiś ca carṣaṇīnām ūtī huve rathānām ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

वि॒श्वान॑रस्य । वः॒ । पति॑म् । अना॑नतस्य । शव॑सः । एवैः॑ । च॒ । च॒र्ष॒णी॒नाम् । ऊ॒ती । हु॒वे॒ । रथा॑नाम् ॥ ८.६८.४

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:68» मन्त्र:4 | अष्टक:6» अध्याय:5» वर्ग:1» मन्त्र:4 | मण्डल:8» अनुवाक:7» मन्त्र:4


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शिव शंकर शर्मा

पुनरपि इन्द्रनाम से परमात्मा के महिमा की स्तुति करते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - (शविष्ठ) हे महाबलाधिदेव ! (सत्पते) हे सुजनरक्षक (इन्द्र) हे परमैश्वर्य्यसंयुक्त महेश ! (ऊतये) अपनी-अपनी सहायता और रक्षा के लिये (सुम्नाय) स्वाध्याय, ज्ञान और सुख के लिये (त्वा+आवर्तयामसि) तुझको हम अपनी ओर खेंचते हैं अर्थात् हम पर कृपादृष्टि करने के लिये तेरी प्रार्थना करते हैं। यहाँ दृष्टान्त देते हैं−(यथा+रथम्) जैसे रथ को खेंचते हैं। तू कैसा है, (तुविकूर्मिम्) जिस तेरे अनन्त कर्म हैं (ऋतीसहम्) जो तू निखिल विघ्नों को निवारण करनेवाला है ॥१॥
भावार्थभाषाः - तुवि=बहुत। शविष्ठ=शव+इष्ठ। शव=बल। सब ही उसी की प्रार्थना करें ॥१॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

प्रभु-आराधन का लाभ

पदार्थान्वयभाषाः - [१] (विश्वानरस्य) = सब मनुष्यों के हित करनेवाले (अनानतस्य) = शत्रुओं से न झुकाये जानेवाले (वः) = तुम्हारे (शवस:) = बल के (पतिम्) = रक्षक प्रभु को (हुवे) = पुकारता हूँ। वस्तुतः प्रभु का आराधन ही हमारे जीवन में उस बल का सञ्चार करता है जो सबका हित करनेवाला व अनानत [ न झुकनेवाला] होता है। [२] (च) = और मैं प्रभु को (चर्षणीनाम् एवैः) = श्रमशील तत्त्वद्रष्टा पुरुषों की गतियों के हेतु से तथा (रथानाम् ऊती) = शरीररूप रथों के रक्षण के दृष्टिकोण से पुकारता हूँ। यह प्रभु का आराधन हमें ज्ञानयुक्त श्रमवाला करता है तथा सुरक्षित शरीररूप रथवाला बनाता है।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- हम प्रभु का आराधन करते हैं। यह आराधन [१] हमें शत्रुओं से झुकाये जानेवाले बल का स्वामी बनाता है, [२] श्रमशील ज्ञानी पुरुषों की क्रियाओं से युक्त करता है [३] हमारे शरीररथों का रक्षण करता है।
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शिव शंकर शर्मा

पुनरपीन्द्रनामधेयेन परमात्ममहिम्नः स्तूयते।

पदार्थान्वयभाषाः - हे शविष्ठ ! महाबलाधि देव ! सत्पते=सतां पालक ! हे इन्द्र=परमैश्वर्य्यसंयुक्त भगवन् ! रथं यथा=रथमिव। ऊतये=रक्षायै। सुम्नाय=स्वाध्याय ज्ञानाय सुखाय च। तुविकूर्मिम्=बहुकर्माणम्। ऋतीसहम्=हिंसकानां दण्डयितारं निखिलविघ्ननिवारकम्। त्वा=त्वाम्। आवर्तयामसि=आवर्तयामः। आकृषाम इत्यर्थः ॥१॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - I pray to Indra, your lord and father, master controller of the irresistible powers and forces of the universe, for divine protection of the people by the dynamics of his moving powers of nature and humanity.