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व॒यमे॑नमि॒दा ह्योऽपी॑पेमे॒ह व॒ज्रिण॑म् । तस्मा॑ उ अ॒द्य स॑म॒ना सु॒तं भ॒रा नू॒नं भू॑षत श्रु॒ते ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

vayam enam idā hyo pīpemeha vajriṇam | tasmā u adya samanā sutam bharā nūnam bhūṣata śrute ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

व॒यम् । ए॒न॒म् । इ॒दा । ह्यः । अपी॑पेम । इ॒ह । व॒ज्रिण॑म् । तस्मै॑ । ऊँ॒ इति॑ । अ॒द्य । स॒म॒ना । सु॒तम् । भ॒र॒ । आ । नू॒नम् । भू॒ष॒त॒ । श्रु॒ते ॥ ८.६६.७

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:66» मन्त्र:7 | अष्टक:6» अध्याय:4» वर्ग:49» मन्त्र:2 | मण्डल:8» अनुवाक:7» मन्त्र:7


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शिव शंकर शर्मा

उसका महिमा दिखलाते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - (यः) जो परमात्मा (दाशुषे) परोपकारी श्रद्धालु और भजन को (निखातम्+चिद्) पृथिवी के अभ्यन्तर गाड़े हुए भी (पुरुसंभृतम्) बहुत संचित (वसु+उद्) धन अवश्य (वपति+इत्) देता ही है, जो (वज्री) न्यायदण्डधारी (सुशिप्रः) शिष्टजनभर्ता और (हर्य्यश्वः) सूर्य्य पृथिव्यादि में व्यापक ही है, वह (इन्द्रः) इन्द्र (यथा+वशत्) जैसा चाहता है, (क्रत्वा) कर्म से (करत्+इत्) वैसा करता ही है ॥४॥
भावार्थभाषाः - वह सब प्रकार हितकारी स्वतन्त्रकर्ता है, अतः वही एक उपास्यदेव है ॥४॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

स्तवन- सोमरक्षण- प्रभुप्राप्ति

पदार्थान्वयभाषाः - [१] (वयं) = हम (एनं) = इस (वज्रिणम्) = वज्रहस्त प्रभु को (इह) = इस जीवन में (इदा) = अब और (ह्यः) = भूतकाल में भी [ गतदिवस में भी] (अपीपेम) = आप्यायित करते हैं। स्तोत्रों के द्वारा हम प्रभु की भावना को अपने अन्दर बढ़ाते हैं । [२] (तस्मा उ) = उस प्रभु को प्राप्ति के लिए ही (अथ) = आज (समना) = संग्राम के द्वारा वासनाओं को पराजित करके (सुतं भरा) = सोम का सम्भरण करते हैं। वे प्रभु (नूनं) = निश्चय से (श्रुते) = शास्त्रश्रवण के होने पर भूषत प्राप्त होते हैं [आभवतु-आगच्छतु] ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- हम सदा प्रभु का स्तवन करें। स्तुति द्वारा वासनाओं को पराजित करके सोम का रक्षण करें। सोमरक्षण द्वारा तीव्रबुद्धि होकर प्रभुदर्शन करनेवाले बनें।
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शिव शंकर शर्मा

तस्य महिमानं दर्शयति।

पदार्थान्वयभाषाः - य इन्द्रः। दाशुषे=परोपकारिणे श्रद्धालये भक्तजनाय। निखातं+चिद्=भूम्यन्तर्निखातमपि। पुरुसंभृतम्। बहुसंचितम्। वसु+उद्=इतस्ततः धनम्। वपति+इत्= एव। स वज्री। सुशिप्रः=शिष्टजनसुपूरकः। हर्य्यश्वश्चेत्। हरिषु=हरणशीलेषु सूर्य्यादिषु। अश्वः=व्यापक एव। स इन्द्रः। यथा+वशत्=कामयते। तथैव। क्रत्वा=कर्मणा। करत्=करोति ॥४॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Here today as before we have regaled this lord of the thunderbolt. For him, again, now, all of one mind, bear and bring the distilled soma of homage, and worship him who would, for certain for joy of the song, grace the celebrants.