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त्वं नो॑ अ॒स्या अम॑तेरु॒त क्षु॒धो॒३॒॑ऽभिश॑स्ते॒रव॑ स्पृधि । त्वं न॑ ऊ॒ती तव॑ चि॒त्रया॑ धि॒या शिक्षा॑ शचिष्ठ गातु॒वित् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

tvaṁ no asyā amater uta kṣudho bhiśaster ava spṛdhi | tvaṁ na ūtī tava citrayā dhiyā śikṣā śaciṣṭha gātuvit ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

त्वम् । नः॒ । अ॒स्याः । अम॑तेः । उ॒त । क्षु॒धः । अ॒भिऽश॑स्तेः । अव॑ । स्पृ॒धि॒ । त्वम् । नः॒ । ऊ॒ती । तव॑ । चि॒त्रया॑ । धि॒या । शिक्ष॑ । श॒चि॒ष्ठ॒ । गा॒तु॒ऽवित् ॥ ८.६६.१४

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:66» मन्त्र:14 | अष्टक:6» अध्याय:4» वर्ग:50» मन्त्र:4 | मण्डल:8» अनुवाक:7» मन्त्र:14


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शिव शंकर शर्मा

पदार्थान्वयभाषाः - (इन्द्र) हे परमैश्वर्य्य ! (वृत्रहन्) हे सर्वदुःखनिवारक (पुरुहूत) हे बहुपूजित हे बहुतों से आहूत (वज्रिवः) हे महादण्डधर भगवन् ! (भृतिम्+न) जैसे नियमपूर्वक लोग वेतन देते हैं, तद्वत् (पुरुतमासः) पुत्र, पौत्र, कलत्र, बन्धु आदिकों से बहुत (वयम्) तेरे उपासक (खलु) हम सब निश्चितरूप से (ते) तुझको (अपूर्व्या) अपूर्व (ब्रह्माणि) स्तोत्र (प्र+भरामसि) समर्पित करते हैं। उन्हें ग्रहण कर और हम जीवों को सुखी रख ॥११॥
भावार्थभाषाः - वृत्रहन्−वृत्रान् विघ्नान् हन्तीति वृत्रहा। वृत्र=विघ्न, दुःख, क्लेश, मेघ, अन्धकार, अज्ञान आदि। पुरुहूत=पुरु=बहुत। हूत=आहूत, पूजित। हम लोगों को उचित है कि उस परमदेव को नवीन-नवीन स्तोत्र बनाकर सुनावें ॥११॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

'कलि' का निर्भय जीवन

पदार्थान्वयभाषाः - [१] हे (कलयः) = ज्ञान का (सम्यग्) = दर्शन करनेवाले तत्त्वज्ञानी पुरुषो! (इत्) = निश्चय से (सोमः) = सोम [वीर्य] (वः) = आपका (सुतः) = सम्पादित किया गया (अस्तु) = हो- आप शरीर में सोम का रक्षण करनेवाले बनो और (मा बिभीतन)=- सब प्रकार के भयों से ऊपर उठो। [२] सोम के रक्षण के होने पर (एषः) = यह (ध्वस्मा) = ध्वंसक (तत्त्व इत्) = निश्चय से (अप अयति) = दूर होता है । (एषः) = यह (घा) = निश्चय से स्वयं अपने आप ही (अप अयति) = दूर हो जाता है।
भावार्थभाषाः - भावार्थ - ज्ञानी पुरुष सोम का रक्षण करते हैं। यह सोमरक्षण ही उन्हें निर्भय बनाता है। यही उनके जीवन से ध्वंसक तत्त्वों को दूर करता है। सब ध्वंसक तत्त्वों के दूर होने से इसका जीवन आनन्दमय होता है [मदी हर्षे], यह 'मत्स्य' कहलाता है। इसी आनन्दमयता के कारण यह 'सम्मद' का सन्तान व 'साम्मद' कहलाता है। सबका आदरणीय होने से 'मान्य' है। स्नेह व निर्देषता को अपनाने से 'मैत्रावरुणि' है। यह प्रार्थना करता है कि-
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शिव शंकर शर्मा

पदार्थान्वयभाषाः - हे इन्द्र ! हे वृत्रहन् ! हे पुरुहूत=बहुहूत बहुपूजित ! हे वज्रिवः=वज्रिवन् महादण्डधर ! भृतिन्न=भृतिमिव= वेतनमिव। पुरुतमासः=पुरुतमाः=पुत्रादिभिर्बहवः। वयम्। घ=खलु ते=त्वदर्थम्। अपूर्व्या=अपूर्वाणि नूतनानि। ब्रह्माणि=स्तोत्राणि। प्रभरामसि=प्रभरामः समर्पयामः ॥११॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - O lord, pray you save us from this ignorance, hunger and want, and imprecation and calumny. You give us protection, enlighten us with your unique wisdom and understanding. O most potent master of the knowledge of the laws and paths of life, guide us on the paths of the world.