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पू॒र्वीश्चि॒द्धि त्वे तु॑विकूर्मिन्ना॒शसो॒ हव॑न्त इन्द्रो॒तय॑: । ति॒रश्चि॑द॒र्यः सव॒ना व॑सो गहि॒ शवि॑ष्ठ श्रु॒धि मे॒ हव॑म् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

pūrvīś cid dhi tve tuvikūrminn āśaso havanta indrotayaḥ | tiraś cid aryaḥ savanā vaso gahi śaviṣṭha śrudhi me havam ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

पू॒र्वीः । चि॒त् । हि । त्वे इति॑ । तु॒वि॒ऽकू॒र्मि॒न् । आ॒ऽशसः॑ । हव॑न्ते । इ॒न्द्र॒ । ऊ॒तयः॑ । ति॒रः । चि॒त् । अ॒र्यः । स॒व॒ना । व॒सो॒ इति॑ । ग॒हि॒ । शवि॑ष्ठ । श्रु॒धि । मे॒ । हव॑म् ॥ ८.६६.१२

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:66» मन्त्र:12 | अष्टक:6» अध्याय:4» वर्ग:50» मन्त्र:2 | मण्डल:8» अनुवाक:7» मन्त्र:12


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शिव शंकर शर्मा

ईश्वर की पूर्णता दिखलाते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - (अस्य+इन्द्रस्य) इस परमात्मा का (कदू+नु) कौनसा (पौंस्यम्) पुरुषार्थ (अकृतम्+अस्ति) करने को बाकी है अर्थात् उसने कौन कर्म अभी तक नहीं किये हैं, जो उसे अब करने हैं। अर्थात् वह सर्व पुरुषार्थ कर चुका है, उसे अब कुछ कर्त्तव्य नहीं। हे मनुष्यों ! (केनो+नु+कम्) किसने (श्रोमतेन) श्रवणीय कर्म के कारण (न+शुश्रुवे) उसको न सुना है, क्योंकि (जन्मनः+परि) सृष्टि के जन्मदिन से ही वह (वृत्रहा) निखिल विघ्नविनाशक नाम से प्रसिद्ध है ॥९॥
भावार्थभाषाः - वह ईश्वर सब प्रकार से पूर्ण धाम है। उसे अब कुछ कर्त्तव्य नहीं। वह सृष्टि के आरम्भ से प्रसिद्ध है, उसी की उपासना करो ॥९॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

तुविकूर्मी प्रभु

पदार्थान्वयभाषाः - [१] हे (तुविकूर्मिन्) = महान् कर्मोंवाले प्रभो ! (पूर्वी:) = पालन व पूरण करनेवाले (आशसः) = आशंसन (चित् हि) = निश्चय से (त्वे) = आप में ही स्थित हैं। आपके आशंसन [स्तवन] हमारा पालन व पूरण करनेवाले हैं। हे (इन्द्र) = सब शत्रुओं का विद्रावण करनेवाले प्रभो ! (ऊतयः) = सब रक्षण (हवन्ते) = आपको ही पुकारते हैं। जब रक्षण की आवश्यकता होती है, तो सब कोई आपको ही पुकारता है। [२] हे (वसो) = हमारे निवास को उत्तम बनानेवाले प्रभो ! (तिरः चित्) = तिरोहित होते हुए भी आप (अर्यः) = सबके स्वामी हैं। (सवना आगहि) = हमारे जीवनयज्ञों में आप प्राप्त होइए। हे (शविष्ठ) = अतिशयेन शक्तिशालिन् प्रभो ! (मे) = मेरी (हवं) = पुकार को (श्रुधि) = सुनिये।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- प्रभु के आशंसन हमारा पूरण करनेवाले हैं, प्रभु में ही सब रक्षण हैं, तिरोहित रूप से सर्वत्र विद्यमान वे प्रभु ही स्वामी हैं। वे हमारे जीवनयज्ञों में प्राप्त होते हैं। प्रभु हमारी पुकार को सुनते हैं और हमें बल प्राप्त कराते हैं।
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शिव शंकर शर्मा

ईश्वरस्य पूर्णतां प्रदर्शयति।

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्याः ! अस्येन्द्रस्य। कदू नु=किन्नु खलु। पौंस्यम्=पौरुषम्। अकृतमस्ति। तेनेश्वरेण कानि कर्माणि न कृतानि यानीदानीं कर्तव्यानि भवेयुः। तेन सर्वाणि कृतानीत्यर्थः। केनो नु कम्=केन खलु जनेन। श्रोमतेन=श्रवणीयेन कर्मणा। स न। शुश्रुवे=श्रुतोऽस्ति। स हि। जनुषः परि। सृष्टेर्जन्मप्रभृत्येव। वृत्रहा=सर्वविघ्नविनाशकोऽस्तीति विज्ञायते ॥९॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Indra, lord of infinite acts, shelter home of the universe, highest and omnipotent, all hopes of humanity, all protections and progress for them, past, present and future, rest in you and emanate from you. Hence all people invoke you and call on you for help. O master protector, listen to my call and come like radiations of light to our yajnas of divine adoration and soma creation.