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अ॒द्याद्या॒ श्वःश्व॒ इन्द्र॒ त्रास्व॑ प॒रे च॑ नः । विश्वा॑ च नो जरि॒तॄन्त्स॑त्पते॒ अहा॒ दिवा॒ नक्तं॑ च रक्षिषः ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

adyādyā śvaḥ-śva indra trāsva pare ca naḥ | viśvā ca no jaritṝn satpate ahā divā naktaṁ ca rakṣiṣaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अ॒द्यऽअ॑द्य । श्वःऽश्वः॑ । इन्द्र॑स् । त्रास्व॑ । प॒रे । च॒ । नः॒ । विश्वा॑ । च॒ । नः॒ । ज॒रि॒तॄन् । स॒त्ऽप॒ते॒ । अहा॑ । दिवा॑ । नक्त॑म् । च॒ । र॒क्षि॒षः॒ ॥ ८.६१.१७

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:61» मन्त्र:17 | अष्टक:6» अध्याय:4» वर्ग:39» मन्त्र:2 | मण्डल:8» अनुवाक:7» मन्त्र:17


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शिव शंकर शर्मा

पदार्थान्वयभाषाः - (राधस्पते) हे सर्वधनस्वामी ! (त्वम्+हि) तू (विधतः) स्वसेवक, उपकारी और सत्यपक्षावलम्बी पुरुष के (महः+राधसः) महान् धन को और (क्षयस्य) उसके वासस्थान को (असि) बढ़ानेवाला होता है। (मघवन्) हे परमधनिन् (इन्द्र) हे इन्द्र ! (गिर्वणः) हे लौकिक वैदिक वचनों से स्तवनीय ईश ! (सुतावन्तः) शुभकर्मी (वयम्) हम उपासक (तम्+त्वा) उस तुझको (हवामहे) साहाय्य के लिये पुकार रहे हैं, आपकी प्रार्थना स्तुति कर रहे हैं, वह तू हमारा सहायक हो ॥१४॥
भावार्थभाषाः - वह ईश्वर ही धनपति और गृहपति है। उसी की कृपा से मनुष्य का गृह सुखमय और वर्धिष्णु होता है। विद्वानो ! अतः उसी की आराधना करो ॥१४॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

सदा रक्षण करनेवाले प्रभु

पदार्थान्वयभाषाः - [१] हे (इन्द्र) = शत्रुविद्रावक प्रभो ! (अद्य अद्य) = 'आज' कहलानेवाले सब दिनों में, (श्वः श्वः) = 'कल' कहलानेवाले सब दिनों में (च) = और (परे) = परसों व परले दिनों में भी (नः त्रास्व) = हमारा रक्षण कीजिए। [२] हे (सत्पते) = सज्जनों के रक्षक प्रभो ! (नः जरितर्निं) = हम स्तोताओं को (विश्वा च अहा) = सब ही दिनों (दिवा नक्तं च) = दिन-रात (रक्षिषः) = रक्षित करिये।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- आज, कल, परसों व सदा दिन-रात प्रभु हमारा रक्षण करें।
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शिव शंकर शर्मा

पदार्थान्वयभाषाः - हे राधस्पते=राधसां धनानां स्वामिन् ! त्वं हि। विधतः=स्वसेवकस्योपकारिणः सत्याश्रयस्य च जनस्य। महः=महतो राधसो धनस्य। क्षयस्य=निवासस्थानस्य च। वर्धयिता। असि=भवसि। हे मघवन् ! हे इन्द्र ! हे गिर्वण=गीर्भिर्वननीय ! सुतावन्तः=शुभकर्मवन्तो वयम्। तं त्वा हवामहे ॥१४॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Day by day every today, day by day every tomorrow and beyond, lord saviour and protector of the good and true, Indra, save and protect us, your celebrants and supplicants, all days, day and night.