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त्वं न॑: प॒श्चाद॑ध॒रादु॑त्त॒रात्पु॒र इन्द्र॒ नि पा॑हि वि॒श्वत॑: । आ॒रे अ॒स्मत्कृ॑णुहि॒ दैव्यं॑ भ॒यमा॒रे हे॒तीरदे॑वीः ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

tvaṁ naḥ paścād adharād uttarāt pura indra ni pāhi viśvataḥ | āre asmat kṛṇuhi daivyam bhayam āre hetīr adevīḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

त्वम् । नः॒ । प॒श्चात् । अ॒ध॒रात् । उ॒त्त॒रात् । पु॒रः । इन्द्र॑ । नि । पा॒हि॒ । वि॒श्वतः॑ । आ॒रे । अ॒स्मत् । कृ॒णु॒हि॒ । दैव्य॑म् । भ॒यम् । आ॒रे । हे॒तीः । अदे॑वीः ॥ ८.६१.१६

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:61» मन्त्र:16 | अष्टक:6» अध्याय:4» वर्ग:39» मन्त्र:1 | मण्डल:8» अनुवाक:7» मन्त्र:16


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शिव शंकर शर्मा

पदार्थान्वयभाषाः - (इन्द्र) परमैश्वर्य्यशाली महान् देव ! (यतः) जिस दुष्ट और पापादि से हम (भयामहे) डरते हैं, (ततः) उससे (नः) हमको (अभयम्+कृधि) अभय दान दे। (मघवन्) हे अतिशय धनाढ्य ! (शग्धि) हमको सर्व कार्य्य में समर्थ कर। (तव) तू अपनी (तत्+ऊतिभिः) उन प्रसिद्ध रक्षाओं से (नः) हमारे (द्विषः) शत्रुओं को (विजहि) हनन कर (मृधः) जगत् को हानि पहुँचानेवाले हिंसक पुरुषों को (वि) दूर कर ॥१३॥
भावार्थभाषाः - जो हमारे शत्रु हों या अहितचिन्तक हों, उनको ईश्वरीय न्याय पर छोड़ो ॥१३॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

रक्षक प्रभु

पदार्थान्वयभाषाः - [१] हे (इन्द्र) = सर्वशक्तिमन् प्रभो ! (त्वं) = आप (नः) = हमें (पश्चात्) = पीछे से (पुरः) = सामने से (अधरात्) = नीचे से [दक्षिण से ] तथा (उत्तरात्) = ऊपर से [उत्तर से] (विश्वतः) = सब ओर से (निपाहि) = रक्षित करिये। [२] आप (दैव्यं भयं) = आधिदैविक आपत्तियों के भय को (अस्मत्) = हमारे से (आरे) = दूर (कृणुहि) = करिये तथा (अदेवी:) = अदिव्य - राक्षसी (हेती:) = आयुधों को भी (आरे) = हमारे से दूर करिये।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- प्रभु सब ओर से हमारा रक्षण करें। आधिदैविक आपत्तियों को प्रभु दूर करें तथा राक्षसी वृत्ति के लोगों के आयुधों को भी हमारे से पृथक् करें।
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शिव शंकर शर्मा

पदार्थान्वयभाषाः - हे इन्द्र ! यतः=दुष्टात् पुरुषात्। वयं भयामहे=बिभीमः। ततस्तस्मात्। नः=अस्मभ्यम्। अभयं+कृधि=कुरु देहि। हे मघवन्=परमधनवन् ! अस्मान्। शग्धि=समर्थान् कुरु। तव। तत्=ताभिः। ऊतिभिः। नः=अस्माकम्। द्विषः=द्वेष्टॄन्। विजहि। मृधः=हिंसकांश्च। विजहि=विनाशय ॥१३॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Indra, pray you protect us back and front, up and down, all round. Remove from us all fear of the divinities, all dangers and strikes from the evil forces.