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यत॑ इन्द्र॒ भया॑महे॒ ततो॑ नो॒ अभ॑यं कृधि । मघ॑वञ्छ॒ग्धि तव॒ तन्न॑ ऊ॒तिभि॒र्वि द्विषो॒ वि मृधो॑ जहि ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

yata indra bhayāmahe tato no abhayaṁ kṛdhi | maghavañ chagdhi tava tan na ūtibhir vi dviṣo vi mṛdho jahi ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

यतः॑ । इ॒न्द्र॒ । भया॑महे । ततः॑ । नः॒ । अभ॑यम् । कृ॒धि । मघ॑ऽवन् । श॒ग्धि । तव॑ । तम् । नः॒ । ऊ॒तिऽभिः । वि । द्विषः॑ । वि । मृधः॑ । ज॒हि॒ ॥ ८.६१.१३

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:61» मन्त्र:13 | अष्टक:6» अध्याय:4» वर्ग:38» मन्त्र:3 | मण्डल:8» अनुवाक:7» मन्त्र:13


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शिव शंकर शर्मा

फिर उसी अर्थ को कहते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - (उग्रबाहुः) दुष्टों के प्रति भयानक भुजधारी (म्रक्षकृत्वा) सृष्टि के अन्त में संहारकारी (पुरन्दरः) दुर्जनों के नगरों का विदारयिता ईश (यदि+मे+हवम्) यदि मेरी प्रार्थना आह्वान और आवाहन (शृणवत्) सुने, तो मैं कृतकृत्य हो जाऊँगा और तब (वसूयवः) सम्पत्त्यभिलाषी हम सब मिल के (वसुपतिम्) धनेश (शतक्रतुम्) अनन्तकर्मा (इन्द्रम्) उस भगवान् की (स्तोमैः) स्तोत्रों से (हवामहे) प्रार्थना करें ॥१०॥
भावार्थभाषाः - ईश्वर के विशेषण में उग्रबाहु और पुरन्दर आदि शब्द दिखलाते हैं कि वह परम न्यायी है। इसके निकट पापी, अपराधी और नास्तिक खड़े नहीं हो सकते, अतः यदि मनुष्य निज कल्याण चाहें, तो असत्यादि दोष प्रथम सर्वथा त्याग देवें ॥१०॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

'अभयकर्ता' प्रभु

पदार्थान्वयभाषाः - [१] हे (इन्द्र) = शत्रुविद्रावक प्रभो ! (यतः) = जिधर से भी हम (भयामहे) = भयभीत हों, (ततः) = उधर से (न:) = हमें (अभयं कृधि) = निर्भय कीजिए। [२] हे (मघवन्) = ऐश्वर्यशालिन् प्रभो ! (शग्धि) = आप शक्तिशाली हो। (तत्) = सो (तव ऊतिभिः) = अपने रक्षणों के द्वारा (नः) = हमारे (विद्विषः) = द्वेषियों व (विमृधः) = हिंसकों को (जहि) = नष्ट करिये।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- प्रभु हमें सर्वतः निर्भय करते हैं। हे प्रभो! आप हमारे द्वेषियों व हिंसकों को समाप्त करिये।
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शिव शंकर शर्मा

पुनस्तमर्थमाह।

पदार्थान्वयभाषाः - उग्रबाहुः=दुष्टान् प्रतिभयानकभुजः। म्रक्षकृत्वा=अवसाने सृष्टेः संहारकर्ता। पुरन्दरः=दुर्जनपुरां दारयिता परमन्यायीशः। यदि मे=मम। हवम्=आह्वानम्। शृणवत्=शृणुयात्। तर्हि अहं कृतकृत्यो भविष्यामीत्यर्थः। एवं तर्हि। वयं=सर्वे। वसूयवः=वसुकामाः। मिलित्वा। वसुपतिम्=धनपतिम्। शतक्रतुम्=अनन्तकर्माणम्। स्तोमैः=स्तोत्रैः। हवामहे=प्रार्थयामहे ॥१०॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Indra, lord indomitable, whoever, whatever and wherever we fear, make us fearless from that. O lord of might and world power, pray strengthen us with your powers and protections of the highest order. Eliminate the jealous, the malignant, the disdainers and contemners.