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अवो॑चाम मह॒ते सौभ॑गाय स॒त्यं त्वे॒षाभ्यां॑ महि॒मान॑मिन्द्रि॒यम् । अ॒स्मान्त्स्वि॑न्द्रावरुणा घृत॒श्चुत॒स्त्रिभि॑: सा॒प्तेभि॑रवतं शुभस्पती ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

avocāma mahate saubhagāya satyaṁ tveṣābhyām mahimānam indriyam | asmān sv indrāvaruṇā ghṛtaścutas tribhiḥ sāptebhir avataṁ śubhas patī ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अवो॑चाम । म॒ह॒ते । सौभ॑गाय । स॒त्यम् । त्वे॒षाभ्या॑म् । म॒हि॒मान॑म् । इ॒न्द्रि॒यम् । अ॒स्मान् । सु । इ॒न्द्रा॒व॒रु॒णा॒ । घृ॒त॒ऽश्चुतः॑ । त्रिऽभिः॑ । सा॒प्तेभिः॑ । अ॒व॒त॒म् । शु॒भः॒ । प॒ती॒ इति॑ ॥ ८.५९.५

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:59» मन्त्र:5 | अष्टक:6» अध्याय:4» वर्ग:31» मन्त्र:1 | मण्डल:8» अनुवाक:6» मन्त्र:5


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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

'शुभस्पती' इन्द्रावरुणा

पदार्थान्वयभाषाः - [१] हम (महते सौभगाय) = महान् सौभाग्य की प्राप्ति के लिए (त्वेषाभ्यां) = दीप्त इन्द्र और वरुण के लिए जितेन्द्रियता व निर्देषता के भावों के लिए (सत्यं महिमानं) = सच्ची सत्य महिमा को तथा (इन्द्रियं) = इनके बल को (अवोचाम) = स्तुतिरूप में कहते हैं । इन्द्र और वरुण के महत्त्व व बल को समझते हुए इनका धारण करते हैं और परिणामतः महान् सौभाग्यवाले होते हैं। [२] हे (इन्द्रावरुणा) = जितेन्द्रियता व निर्देषता के भावो ! (घृतश्चुतः) = अपने में ज्ञानदीप्ति को क्षरित करनेवाले (अस्मान्) = हम लोगों को आप (त्रिभिः) = आध्यात्मिक, आधिभौतिक व आधिदैविक रूप से तीन प्रकार के अर्थोंवाली (साप्तेभिः) = सप्त छन्दोमयी वेदवाणियों के द्वारा (अवतम्) = रक्षित करो। आप ही तो (शुभस्पती) = सब शुभ बातों का रक्षण करनेवाले हो ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- जितेन्द्रियता व निर्देषता के महत्त्व को हम समझें। ये दिव्यभाव ही हमारे अन्दर सब शुभ बातों का रक्षण करेंगे।
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - We speak and celebrate, for the sake of great goodness and prosperity, the truth, grandeur and power, honour and excellence received from the mighty and magnificent Indra and Varuna. O Indra and Varuna, gracious and benevolent protectors of the greatness and goodness of life, protect and promote us by the sevenfold voice of the seven sisters and seven sages at the three levels of body, mind and soul.