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इन्द्र॒ नेदी॑य॒ एदि॑हि मि॒तमे॑धाभिरू॒तिभि॑: । आ शं॑तम॒ शंत॑माभिर॒भिष्टि॑भि॒रा स्वा॑पे स्वा॒पिभि॑: ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

indra nedīya ed ihi mitamedhābhir ūtibhiḥ | ā śaṁtama śaṁtamābhir abhiṣṭibhir ā svāpe svāpibhiḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

इन्द्र॑ । नेदी॑यः । आ । इत् । इ॒हि॒ । मि॒तऽमे॑धाभिः । ऊ॒तिऽभिः॑ । आ । श॒म्ऽत॒म॒ । शम्ऽत॑माभिः । अ॒भिष्टि॑ऽभिः । आ । सु॒ऽआ॒पे॒ । स्वा॒पिऽभिः॑ ॥ ८.५३.५

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:53» मन्त्र:5 | अष्टक:6» अध्याय:4» वर्ग:23» मन्त्र:1 | मण्डल:8» अनुवाक:6» मन्त्र:5


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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

बुद्धि-शान्ति इष्टप्राप्ति-बन्धुत्व

पदार्थान्वयभाषाः - [१] हे (इन्द्र) = शत्रुविद्रावक प्रभो! आप (नेदीयः) = अत्यन्त समीप (इत्) = निश्चय से (आ इहि) = सर्वथा प्राप्त होइये। आप (मितमेधाभिः) [निमत] = जिनमें मेधा का निर्माण हुआ है, उन रक्षणों के साथ हमें प्राप्त होइये। प्रभु जिसका रक्षण करते हैं, उसे बुद्धि प्राप्त करा देते हैं । [२] हे (शन्तम) = अधिक-से-अधिक शान्ति को देनेवाले प्रभो ! आप (शन्तमाभिः) = अधिक-से-अधिक शान्ति को देनेवाली (अभिष्टिभिः) = इष्टप्राप्तियों के द्वारा (आ) = हमें प्राप्त होइये । हे (स्वावे) = उत्तम बन्धुभूत प्रभो! आप (स्वापिभिः) = उत्तम बन्धुत्वों से (आ) = हमें प्राप्त होइये ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- प्रभु के रक्षण हमें बुद्धि व शान्ति प्राप्त कराते हैं। इन रक्षणों को प्राप्त करके हम शत्रुओं पर आक्रमण करके इष्ट को प्राप्त करते हैं। प्रभु ही हमारे सर्वश्रेष्ठ बन्धु हैं।
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Indra, closest power divine, come at the earliest with sure protections of definite resolution of mind. Lord of supreme peace, come with most peaceful fulfilment of desire, come, dear friend, with most friendly powers of protection and progress.