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प्र वी॒रमु॒ग्रं विवि॑चिं धन॒स्पृतं॒ विभू॑तिं॒ राध॑सो म॒हः । उ॒द्रीव॑ वज्रिन्नव॒तो व॑सुत्व॒ना सदा॑ पीपेथ दा॒शुषे॑ ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

pra vīram ugraṁ viviciṁ dhanaspṛtaṁ vibhūtiṁ rādhaso mahaḥ | udrīva vajrinn avato vasutvanā sadā pīpetha dāśuṣe ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

प्र । वी॒रम् । उ॒ग्रम् । विवि॑चिम् । ध॒न॒ऽस्पृत॑म् । विऽभू॑तिम् । राध॑सः । म॒हः । उ॒द्रीऽइ॑व । व॒ज्रि॒न् । अ॒व॒तः । व॒सु॒ऽत्व॒ना । सदा॑ । पी॒पे॒थ॒ । दा॒शुषे॑ ॥ ८.५०.६

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:50» मन्त्र:6 | अष्टक:6» अध्याय:4» वर्ग:17» मन्त्र:1 | मण्डल:8» अनुवाक:6» मन्त्र:6


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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

'जलपूर्ण कूप के समान' प्रभु

पदार्थान्वयभाषाः - [१] हम (वीरम्) = शत्रुओं को कम्पित करनेवाले, (उग्र) = तेजस्वी, (विविचिम्) = विवेकशील, (धनस्पृतं) = धन से सबको प्रीणित करनेवाले, (महः राधसः) = महान् ऐश्वर्यों की (विभूतिम्) = विशिष्ट भूति [ऐश्वर्य] वाले प्रभु को (प्र) [ उपसेदिम] = प्रकर्षेण उपासित करनेवाले हों। [२] हे (वज्रिन्) = वज्रहस्त प्रभो! आप (उद्रीवः अवतः) = जलपूर्ण कूप के समान हैं। सदा सबके लिए जलों को प्राप्त कराता हुआ कुआँ खाली नहीं हो जाता। वह जैसे सबको जल देता है, इसी प्रकार हे प्रभो ! आप (सदा) = सदा (दाशुषे) = दाश्वान् पुरुष के लिए आत्मसमर्पण करनेवाले पुरुष के लिए (वसुत्वना) = वसुओं के द्वारा (पीपेथ) = आप्यायन करनेवाले होते हो।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- प्रभु जलपूर्ण कूप के समान हैं। श्रम के द्वारा प्रत्येक व्यक्ति प्रभु से धनरूप जल को प्राप्त कर पाता है।
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - I pray to Indra, brave, illustrious, discriminative, giver of wealth and excellence and all majestic, for greatness of honour and success. O lord of thunderbolt, action and justice, like an over-flowing spring of generosity, you bless the liberal giver with ample wealth of the world.