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श॒तानी॑का हे॒तयो॑ अस्य दु॒ष्टरा॒ इन्द्र॑स्य स॒मिषो॑ म॒हीः । गि॒रिर्न भु॒ज्मा म॒घव॑त्सु पिन्वते॒ यदीं॑ सु॒ता अम॑न्दिषुः ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

śatānīkā hetayo asya duṣṭarā indrasya samiṣo mahīḥ | girir na bhujmā maghavatsu pinvate yad īṁ sutā amandiṣuḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

श॒तऽअ॑नी॑काः । हे॒तयः॑ । अ॒स्य॒ । दु॒स्तराः॑ । इन्द्र॑स्य । स॒म्ऽइषः॑ । म॒हीः । गि॒रिः । न । भु॒ज्मा । म॒घव॑त्ऽसु । पि॒न्व॒ते॒ । यत् । ई॒म् । सु॒ताः । अम॑न्दिषुः ॥ ८.५०.२

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:50» मन्त्र:2 | अष्टक:6» अध्याय:4» वर्ग:16» मन्त्र:2 | मण्डल:8» अनुवाक:6» मन्त्र:2


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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

शतानीका हेतयः

पदार्थान्वयभाषाः - [१] (अस्य) = इस (इन्द्रस्य) = शत्रुओं का विद्रावण करनेवाले प्रभु के (हेतयः) = हनन साधन आयुध (शतानीकाः) = सैंकड़ों सैन्यों के समान सबल हैं अतएव (दुष्टरा:) = शत्रुओं से तैरने योग्य नहीं। इन आयुधों से शत्रु बच नहीं पाते। इस प्रभु की (सम् इषः) = हमारे साथ संगत होनेवाली प्रेरणाएँ (महीः) = अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं। इन प्रेरणाओं को न सुनने पर ही हम पथभ्रष्ट होते हैं और प्रभु की हेतियों से दण्डित होते हैं । [२] वे प्रभु (भुज्मा) = सबका पालन करनेवाले हैं। (गिरिः न) = [गृणाति] एक उपदेष्टा के समान (मघवत्सु) = यज्ञशील पुरुषों में (पिन्वते) = ज्ञान व ऐश्वर्य का वर्षण करते हैं, (यत्) = जब (ईम्) = निश्चय से (सुताः) = उत्पन्न हुए हुए सोम (अमन्दिषुः) = हमें आनन्दित करनेवाले होते हैं, अर्थात् यदि हम सोमरक्षण द्वारा जीवन को उल्लासमय बनाते हैं, तो प्रभु से ज्ञान व ऐश्वर्य को प्राप्त करनेवाले बनते हैं।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- प्रभु की प्रेरणाएँ अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं इनका उल्लङ्घन करने पर हम प्रभु के हननसाधन आयुधों से बच नहीं पाते और जब प्रभु से उत्पन्न किये गये सोमकणों का हम रक्षण करते हैं तो प्रभु हमारे लिए ज्ञान व ऐश्वर्य का वर्षण करनेवाले होते हैं।
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Hundreds of great and invincible forces of this lord almighty, protective, promotive and overladen with sustenance, power and prosperity like the pregnant cloud and abundant mountain, shower gifts of desire and fulfilment on the seekers of excellence and grace when the soma creations of the yajnic celebrants please the lord.