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परि॑ णो वृणजन्न॒घा दु॒र्गाणि॑ र॒थ्यो॑ यथा । स्यामेदिन्द्र॑स्य॒ शर्म॑ण्यादि॒त्याना॑मु॒ताव॑स्यने॒हसो॑ व ऊ॒तय॑: सु॒तयो॑ व ऊ॒तय॑: ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

pari ṇo vṛṇajann aghā durgāṇi rathyo yathā | syāmed indrasya śarmaṇy ādityānām utāvasy anehaso va ūtayaḥ suūtayo va ūtayaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

परि॑ । नः॒ । वृ॒ण॒ज॒न् । अ॒घा । दुः॒ऽगाणि॑ । र॒थ्यः॑ । य॒था॒ । स्याम॑ । इत् । इन्द्र॑स्य । शर्म॑णि । आ॒दि॒त्याना॑म् । उ॒त । अव॑सि । अ॒ने॒हसः॑ । वः॒ । ऊ॒तयः॑ । सु॒ऽऊ॒तयः॑ । वः॒ । ऊ॒तयः॑ ॥ ८.४७.५

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:47» मन्त्र:5 | अष्टक:6» अध्याय:4» वर्ग:7» मन्त्र:5 | मण्डल:8» अनुवाक:6» मन्त्र:5


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शिव शंकर शर्मा

पदार्थान्वयभाषाः - (देवाः) हे दिव्यगुणयुक्त मनुष्यों ! (आदित्याः) हे सभाध्यक्षजनो, हे माननीय श्रेष्ठ पुरुषो ! आप लोग (अघानाम्) निखिल पाप दुर्भिक्ष रोगादि क्लेशों को (अपाकृतिम्+विद) दूर करना जानते हैं, इसलिये (यथा) जैसे (वयः) पक्षिगण (उपरि) अपने बच्चों के ऊपर (पक्षा) रक्षार्थ दोनों पक्षों को फैला देते हैं, तद्वत् (अस्मे) हम लोगों के ऊपर आप (शर्म) मङ्गलमय कल्याणकारी रक्षण (वि+यच्छत) विस्तीर्ण करें (अनेहसः) इत्यादि पूर्ववत् ॥२॥
भावार्थभाषाः - विद्वानों, सभासदों, श्रेष्ठ पुरुषों को उचित है कि उपद्रवों की शान्ति का उपाय जानें और कार्य्य में लावें ॥२॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

निष्पापता

पदार्थान्वयभाषाः - [१] (नः) = हमें (अघा) = पाप (परिवृणजन्) = सर्वथा छोड़ जाएँ, (यथा) = जैसे (रथ्यः) = रथ का वहन करनेवाले घोड़े (दुर्गाणि) = गड्ढे आदि विषम मार्गों को छोड़ जाते हैं । [२] हम (इत्) = निश्चय से (इन्द्रस्य) = उस शत्रुविद्रावक प्रभु की (शर्मणि) = शरण में [ shelter] स्याम हों। (उत) = और (आदित्या-नाम्) = आदित्यों के (अवसि) = रक्षण में हों । हे आदित्यो ! (वः ऊतयः) = आपके रक्षण (अनेहसः) = हमें निष्पाप बनाते हैं (वः) = आपके (ऊतयः) = रक्षण (सु ऊतयः) = उत्तम रक्षण हैं।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- आदित्यवृत्तियाँ व प्रभु की शरण हमें निष्पाप बनानेवाली हों।
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शिव शंकर शर्मा

पदार्थान्वयभाषाः - हे देवाः ! हे आदित्याः=सभाध्यक्षाः। यूयम्। अघानाम्=अघानां पापानां दुर्भिक्षाद्युपद्रवाणां ज्वरादिरोगाणाञ्च। अपाकृतिम्=अपसरणम्। विद=जानीथ। अतो यूयम्। यथा। वयः=पक्षिणः। उपरि=स्वशिशुकानामुपरि। पक्षा=पक्षौ। प्रसारयन्ति। तथैव अस्मे=अस्माकं मनुष्याणामुपरि। शर्म=कल्याणम्। वि यच्छत=विस्तारयत। अनेहस इत्यादि गतम् ॥२॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Just as charioteers avoid difficult and impossible roads, so let sins and crimes go by, leaving us aside. Let us be in the homely protection of Indra and under the protective umbrella of the Adityas. O Adityas, free from sin and evil are your protections, noble and holy your safeguards.