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नि॒ष्कं वा॑ घा कृ॒णव॑ते॒ स्रजं॑ वा दुहितर्दिवः । त्रि॒ते दु॒ष्ष्वप्न्यं॒ सर्व॑मा॒प्त्ये परि॑ दद्मस्यने॒हसो॑ व ऊ॒तय॑: सु॒तयो॑ व ऊ॒तय॑: ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

niṣkaṁ vā ghā kṛṇavate srajaṁ vā duhitar divaḥ | trite duṣṣvapnyaṁ sarvam āptye pari dadmasy anehaso va ūtayaḥ suūtayo va ūtayaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

नि॒ष्कम् । वा॒ । घ॒ । कृ॒णव॑ते । स्रज॑म् । वा॒ । दु॒हि॒तः॒ । दि॒वः॒ । त्रि॒ते । दुः॒ऽस्वप्न्य॑म् । सर्व॑म् । आ॒प्त्ये । परि॑ । द॒द्म॒सि॒ । अ॒ने॒हसः॑ । वः॒ । ऊ॒तयः॑ । सु॒ऽऊ॒तयः॑ । वः॒ । ऊ॒तयः॑ ॥ ८.४७.१५

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:47» मन्त्र:15 | अष्टक:6» अध्याय:4» वर्ग:9» मन्त्र:5 | मण्डल:8» अनुवाक:6» मन्त्र:15


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शिव शंकर शर्मा

पदार्थान्वयभाषाः - हे सभाधिष्ठातृवर्ग ! (इह) इस संसार में (रक्षस्विने) राक्षस के साथी को भी (भद्रम्+न) कल्याण न हो, तब राक्षस को कहाँ से हो सकता, (अवयै+न) जो हमको मारने के लिये ताकता फिरता है, उसका भद्र न हो, (च) किन्तु (गवे) हमारे गौ आदि पशुओं को (धेनवे+च) नवप्रसूतिका गौ आदि को (भद्रम्) कल्याण हो (च) तथा (श्रवस्यते+वीराय) यशःकामी शूरवीर का कल्याण हो ॥१२॥
भावार्थभाषाः - दुष्ट निषिद्ध और हानिकारी कर्म करनेवाले राक्षस कहलाते हैं। उन्हें शिक्षा और दण्ड देकर सुपथ पर लाना चाहिये ॥१२॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

धन व सौन्दर्य के आकर्षण से दूर

पदार्थान्वयभाषाः - [१] हे (दिवः दुहितः) = प्रकाश का पूरण करनेवाली उषे ! (निष्कं) = स्वर्ण आभूषणों को (वा घा) = निश्चय से (कृणवते) = बनानेवाले के लिए (वा) = अथवा (स्त्रजं) = माला को करनेवाले के लिए जो (दुःष्वप्न्यं) = अशुभ स्वप्न होता है। (सर्वं) = उस सबकी (त्रिते आप्त्ये) = काम-क्रोध-लोभ से ऊपर उठनेवाले विद्वान् की समीपता में (परि दद्मसि) = अपने से दूर करते हैं [ परेर्वर्जने] । [२] सुवर्णादि आभूषण व माला आदि धारण करनेवाले व्यक्ति को देखकर चित्त में जो दुर्विचार आते हैं, उन्हें (त्रित आप्त्यों) = को समीपता में नष्ट करें। दृढव्रती होकर सुवर्ण आदि देखकर व माला आदि से अलंकृत वनिताओं को देखकर स्वप्न में भी प्रलुब्ध न हों। हे देवो ! (वः ऊतयः) = आपके रक्षण (अनेहसः) = हमें निष्पाप बनाते हैं। (वः ऊतयः) = आपके रक्षण (सु ऊतयः) = उत्तम रक्षण हैं।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- हम काम-क्रोध-लोभ को जीतनेवाले आप्त विद्वानों के सामीप्य में रहकर स्वर्ण व मालाओं के आकर्षण से ऊपर उठ जाएँ। इनके विषय में ही हम स्वप्न न देखते रहें ।
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शिव शंकर शर्मा

पदार्थान्वयभाषाः - हे आदित्याः ! इह=संसारे। रक्षस्विने=राक्षसेन सह निवासिनेऽपि। भद्रं न भवतु। कुतो। राक्षसाय। अवयै=अस्मान् हिंसितुमवगच्छते भद्रं न भवतु। तथा। उपयै=उपगच्छते भद्रं न भवतु। किन्तु गवे च भद्रं भवतु। धेनवे च=भद्रं भवतु। नवप्रसूतिका गौर्धेनुः। पुनः। श्रवस्यते=यशःकामाय। वीराय। भद्रं स्यात्। शिष्टमुक्तम् ॥१२॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - O daughter of the light of dawn, heavenly revelation of wisdom, descent of divinity, all bad dreams and ambitions for the maker of gold ornaments or the maker of flower garlands, or in relation to the pride of body, mind and soul, we throw off. Sinless are your protections, holy your safeguards.