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नेह भ॒द्रं र॑क्ष॒स्विने॒ नाव॒यै नोप॒या उ॒त । गवे॑ च भ॒द्रं धे॒नवे॑ वी॒राय॑ च श्रवस्य॒ते॑ऽने॒हसो॑ व ऊ॒तय॑: सु॒तयो॑ व ऊ॒तय॑: ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

neha bhadraṁ rakṣasvine nāvayai nopayā uta | gave ca bhadraṁ dhenave vīrāya ca śravasyate nehaso va ūtayaḥ suūtayo va ūtayaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

न । इ॒ह । भ॒द्रम् । र॒क्ष॒स्विने॑ । न । अ॒व॒ऽयै । न । उ॒प॒ऽयै । उ॒त । गवे॑ । च॒ । भ॒द्रम् । धे॒नवे॑ । वी॒राय॑ । च॒ । श्र॒व॒स्य॒ते । अ॒ने॒हसः॑ । वः॒ । ऊ॒तयः॑ । सु॒ऽऊ॒तयः॑ । वः॒ । ऊ॒तयः॑ ॥ ८.४७.१२

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:47» मन्त्र:12 | अष्टक:6» अध्याय:4» वर्ग:9» मन्त्र:2 | मण्डल:8» अनुवाक:6» मन्त्र:12


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शिव शंकर शर्मा

पदार्थान्वयभाषाः - (अदितिः) जो प्रजास्थापित अखण्डनीया राजसभा (मित्रस्य) ब्राह्मण-दल की (रेवतः) धनवान् (अर्य्यम्णः) वैश्य-दल की (च) तथा (वरुणस्य) राज-दल की (माता) निर्मात्री है। वह (नः) हमारी (उरुष्यतु) रक्षा करे, पुनः (अदितिः) वह सभा (शर्म) कल्याण, शरण, सुख और आनन्द (यच्छतु) देवे ॥९॥
भावार्थभाषाः - समस्त प्रजाएँ मिलकर सुदृढ़तर सभा स्थापित करें। वहाँ देश के बुद्धिमान्, विद्वान्, शूरवीर और प्रत्येक दल के मुख्य-२ पुरुष और नारियाँ सभासद् बनाए जायँ, जो देश का सर्वप्रकार से हित किया करें ॥९॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

रक्षस्वी का अकल्याण

पदार्थान्वयभाषाः - [१] अपने रक्षण के लिए औरों का क्षय करनेवाला पुरुष 'रक्षस्वी' है । (इह) = यहाँ संसार में (रक्षस्विने) = इस रक्षस्वी पुरुष के लिए (भद्रं न) = कल्याण न हो। (अवयै निम्न) = गतिवाले के लिए (न) = कल्याण न हो (उत) = और (उपयै न) = हिंसा के लिए हमारी ओर आते हुए के लिए कल्याण न हो। [२] (धेनवे) = नवसूतिका दुधार (गवे च) = गौ के लिए निश्चय से (भद्रं) = कल्याण हो, (श्रवस्यते) = यशस्वी जीवन की कामनावाले (वीराय) = वीर पुरुष के लिए कल्याण हो। (वः) = आपके (च) = तथा (ऊतयः) = रक्षण (अनेहसः) = निष्पाप हों, (वः ऊतयः) = आपके रक्षण (सु ऊतयः) = उत्तम रक्षण हों।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- रक्षस्वी- निम्न गतिवाले-हिंसा के लिए समीप आनेवाले का अकल्याण ही होता है। नवसूतिका गौ व यशस्वी वीर का कल्याण हो ।
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शिव शंकर शर्मा

पदार्थान्वयभाषाः - अदितिः=प्रजास्थापिता अखण्डनीया सभा। मित्रस्य=ब्राह्मणस्य। रेवतः=धनवतोऽर्यम्णो=वैश्यदलस्य। च पुनः। वरुणस्य=राजदलस्य। माता=निर्मात्री वर्तते। सा नोऽस्मान्। उरुष्यतु। रक्षतु। साऽदितिः। शर्म=सुखम्। यच्छतु=ददातु ॥९॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - No good here for friends of evil, no possibility of escape, no appeasement. But for the cow, the lands, literature and culture, for the milch cow, for creative and productive forces, for the brave warriors and philanthropists of renown, for all these, yes, all good, all safe, all opportunities. Sinless are your protections, unfailing your safeguards.