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आदि॑त्या॒ अव॒ हि ख्यताधि॒ कूला॑दिव॒ स्पश॑: । सु॒ती॒र्थमर्व॑तो य॒थानु॑ नो नेषथा सु॒गम॑ने॒हसो॑ व ऊ॒तय॑: सु॒तयो॑ व ऊ॒तय॑: ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ādityā ava hi khyatādhi kūlād iva spaśaḥ | sutīrtham arvato yathānu no neṣathā sugam anehaso va ūtayaḥ suūtayo va ūtayaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

आदि॑त्याः । अव॑ । हि । ख्यत॑ । अधि॑ । कूला॑त्ऽइव । स्पशः॑ । सु॒ऽती॒र्थम् । अर्व॑तः । य॒था॒ । अनु॑ । नः॒ । ने॒ष॒थ॒ । सु॒ऽगम् । अ॒ने॒हसः॑ । वः॒ । ऊ॒तयः॑ । सु॒ऽऊ॒तयः॑ । वः॒ । ऊ॒तयः॑ ॥ ८.४७.११

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:47» मन्त्र:11 | अष्टक:6» अध्याय:4» वर्ग:9» मन्त्र:1 | मण्डल:8» अनुवाक:6» मन्त्र:11


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शिव शंकर शर्मा

पदार्थान्वयभाषाः - (देवाः) हे सभ्यपुरुषो ! (वर्मसु) कवचों में होकर अर्थात् कवचों को धारण कर (युध्यन्तः+इव) योद्धा शूरवीर के समान हम (अपि) भी (युष्मे) आपके अन्तर्गत (स्मसि) विद्यमान हैं और हे सभ्यो ! (यूयम्) आप (महः+एनसः) बड़े पाप, महान् क्लेश और आपत्ति से (नः) हमको (उरुष्यत) बचाते हैं और (अर्भात्) छोटे-२ अपराध और दुःख से भी (यूयम्) आप हमको बचाते हैं ॥८॥
भावार्थभाषाः - ईश्वरीय और राष्ट्रसम्बन्धी आज्ञाओं के मानने से मनुष्य सुखी रहता है ॥८॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

आदित्यों की कृपादृष्टि

पदार्थान्वयभाषाः - [१] हे (आदित्याः) = अच्छाइयों का आदान करनेवाले आदित्यो ! आप (अधः) = स्थित हम लोगों का (हि) = निश्चय से (अव ख्यत) = इस प्रकार ध्यान करिये, (इव) = जिस प्रकार (अधिकूलात्) = ऊपर किनारे से (स्पशः) = द्रष्टा लोग अधोगत उदक को देखते हैं। वहाँ स्थित लोग (यथा) = जिसप्रकार (अर्वतः) = घोड़ों को (सुतीर्थम्) = उत्तम घाट पर पानी पीने के लिए ले जाते हैं, उसी प्रकार (नः) = हमें (सुगम् अनुनेषथा) = सुन्दर गमनयोग्य मार्ग पर ले चलिये। [२] माता, पिता, आचार्य व अतिथियों का कार्य यही है कि छोटों के लिए वे मार्ग प्रणेता हों। हे आदित्यो ! (वः ऊतयः) = आपके रक्षण (अनेहसः) = निष्पाप हैं-हमें पापशून्य जीवनवाला बनाते हैं। (वः ऊतयः) = आपके रक्षण (सु ऊतयः) = उत्तम रक्षण हैं।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- आदित्यों के निरीक्षण में हम उत्तम मार्गों से गति करते हुए निष्पाप व सुन्दर जीवनवाले बनें।
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शिव शंकर शर्मा

पदार्थान्वयभाषाः - हे देवाः ! सभ्याः ! वर्मसु=कवचेषु। युध्यन्त+इव=युध्यन्तः शूरा इव। वयमपि। युष्मे=युष्मासु। स्मसि। पुनः। यूयम्। नोऽस्मान्। महः=महतः। एनसः। पापात्=उपद्रवात्। अर्भादपि=अपराधात्। उरुष्यत=रक्षथः ॥८॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Adityas, brilliant leaders of the nation, just as people stand on the bank of a river above and look below upon the flowing waters, so look below upon the people on the march, and just as they take the horses across the stream by the safest ford, so lead the nation forward by the safest paths of progress. Sinless are your protections and safest your securities.