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महि॑ वो मह॒तामवो॒ वरु॑ण॒ मित्र॑ दा॒शुषे॑ । यमा॑दित्या अ॒भि द्रु॒हो रक्ष॑था॒ नेम॒घं न॑शदने॒हसो॑ व ऊ॒तय॑: सु॒तयो॑ व ऊ॒तय॑: ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

mahi vo mahatām avo varuṇa mitra dāśuṣe | yam ādityā abhi druho rakṣathā nem aghaṁ naśad anehaso va ūtayaḥ suūtayo va ūtayaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

महि॑ । वः॒ । म॒ह॒ताम् । अवः॑ । वरु॑ण । मित्र॑ । दा॒शुषे॑ । यम् । आ॒दि॒त्याः॒ । अ॒भि । द्रु॒हः । रक्ष॑थ । न । ई॒म् । अ॒घम् । न॒श॒त् । अ॒ने॒हसः॑ । वः॒ । ऊ॒तयः॑ । सु॒ऽऊ॒तयः॑ । वः॒ । ऊ॒तयः॑ ॥ ८.४७.१

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:47» मन्त्र:1 | अष्टक:6» अध्याय:4» वर्ग:7» मन्त्र:1 | मण्डल:8» अनुवाक:6» मन्त्र:1


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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

'मित्र और वरुण' का महान् रक्षण

पदार्थान्वयभाषाः - [१] हे (वरुण) = निर्देषता के दिव्यभाव, (मित्र) = स्नेह के दिव्यभाव ! (महतो) = महान् (वः) = आपका (अवः) = रक्षण (महि) = महान् है। यह रक्षण (दाशुषे) = दाश्वान् पुरुष के लिए होता है उस व्यक्ति के लिए जो आपके प्रति अपने को दे डालता है-जिसकी साधना यही होती है कि निर्दोष बनना है और प्रेमवाला बनना है। [२] हे (आदित्याः) = उत्तमताओं का आदान करनेवाले दिव्यभावो ! (यं) = जिसको (द्रुहाः) = द्रोह की भावना से (अभिरक्षथ) = आप बचाते हो, इस व्यक्ति को (ईम्) = निश्चय से (अघं) = पाप (न नशत्) = नहीं व्यापता । हे आदित्यो ! (वः) = आपके (ऊतयः) = रक्षण (अनेहसः) = हमें निष्पाप बनानेवाले हैं। (वः) = आपके (ऊतयः) = रक्षण (सु ऊतयः) = उत्तम रक्षण हैं।
भावार्थभाषाः - भावार्थ-मित्र और वरुण व आदित्यों का रक्षण महान् है। ये हमें द्रोह की भावना से बचाकर निष्पाप बनाते हैं। इनके रक्षण उत्तम हैं व पवित्र बनानेवाले हैं।
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - O Varuna, Mitra, powers wise, just and loving, choice and love of all, great is your protection, noble ones, for the generous man of charity. O Adityas, brilliant powers of light and enlightenment, children of indestructible mother life, whoever you protect from the jealous and the malignant, no sin ever touches. Sinless are your protections, noble and holy are your protections (free from jealousy, anger and violence).