अध॒ स्या योष॑णा म॒ही प्र॑ती॒ची वश॑म॒श्व्यम् । अधि॑रुक्मा॒ वि नी॑यते ॥
अंग्रेज़ी लिप्यंतरण
मन्त्र उच्चारण
adha syā yoṣaṇā mahī pratīcī vaśam aśvyam | adhirukmā vi nīyate ||
पद पाठ
अध॑ । स्या । योष॑णा । म॒ही । प्र॒ती॒ची । वश॑म् । अ॒श्व्यम् । अधि॑ऽरुक्मा । वि । नी॒य॒ते॒ ॥ ८.४६.३३
ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:46» मन्त्र:33
| अष्टक:6» अध्याय:4» वर्ग:6» मन्त्र:8
| मण्डल:8» अनुवाक:6» मन्त्र:33
0 बार पढ़ा गया
हरिशरण सिद्धान्तालंकार
'मही योषणा अधिरुक्मा'
पदार्थान्वयभाषाः - [१] (अध) = अब (स्या) = वह (योषणा) = बुराइयों को पृथक् करनेवाली व अच्छाइयों को मिलानेवाली यह वेदवाणीरूप माता (मही) = महनीय होती हुई (अधिरुक्मा) = अतिशयित ज्ञानरूप रुक्माभरणोंवाली (वशं) = अपनी इन्द्रियों को वश में करनेवाले (अश्वयं) = प्रशस्तेन्द्रिय पुरुष के (प्रतीची) = अभिमुख प्राप्त होनेवाली (विनीयते) = ले जायी जाती हैं । [२] जितेन्द्रिय पुरुष को यह वेदवाणी प्राप्त होती है। यह उसके जीवन से सब दोषों को दूर करती है और अच्छाइयों को प्राप्त करती है। यह ज्ञानरूप देदीप्यमान आभरणोंवाली वेदवाणी इस वश को ही प्राप्त होती है।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- हम जितेन्द्रिय [वश] व प्रशस्तेन्द्रिय [अश्व्य] बनें। हमें वेदज्ञान प्राप्त होगा। यह हमारे जीवन का पवित्र व दीप्त बनाएगा। इस योषणा के द्वारा - बुराइयों को पृथक् करनेवाली वेदवाणी के द्वारा 'हम त्रित' बनते हैं-काम-क्रोध-लोभ तीनों को तैर जाते हैं तथा 'आप्त्य' बनते हैं- प्रभु को प्राप्त करनेवालों में उत्तम। यह 'त्रित आप्त्य' आदित्यों का स्तवन करता है-
0 बार पढ़ा गया
डॉ. तुलसी राम
पदार्थान्वयभाषाः - Now then that youthful maiden, great and glamorous in golden finery, is led forth to the seasoned bachelor of her love and desire on the wedding vedi.
