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दाना॑सः पृथु॒श्रव॑सः कानी॒तस्य॑ सु॒राध॑सः । रथं॑ हिर॒ण्ययं॒ दद॒न्मंहि॑ष्ठः सू॒रिर॑भू॒द्वर्षि॑ष्ठमकृत॒ श्रव॑: ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

dānāsaḥ pṛthuśravasaḥ kānītasya surādhasaḥ | rathaṁ hiraṇyayaṁ dadan maṁhiṣṭhaḥ sūrir abhūd varṣiṣṭham akṛta śravaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

दाना॑सः । पृ॒थु॒ऽश्रव॑सः । का॒नी॒तस्य॑ । सु॒ऽराध॑सः । रथ॑म् । हि॒र॒ण्यय॑म् । दद॑त् । मंहि॑ष्ठः । सू॒रिः । अ॒भू॒त् । वर्षि॑ष्ठम् । अ॒कृ॒त॒ । श्रवः॑ ॥ ८.४६.२४

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:46» मन्त्र:24 | अष्टक:6» अध्याय:4» वर्ग:5» मन्त्र:4 | मण्डल:8» अनुवाक:6» मन्त्र:24


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शिव शंकर शर्मा

ईश्वर के कृपापात्र जन का वर्णन यहाँ से आरम्भ करते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - (सः) प्रसिद्ध-२ विद्वान् (आ+एतु) इतस्ततः उपदेश के लिये आवें और जाएँ (यः+अदेवः) जो देव-भिन्न मनुष्य (ईवत्) व्यापक सर्वत्र गमनशील और (पूर्तम्) परिपूर्ण ईश्वर को (आददे) स्वीकार करते हैं अर्थात् ईश्वर की आज्ञा पर चलते हैं। वे विद्वान् इस प्रकार भ्रमण करें कि (यथा+चित्) जिस प्रकार (अश्व्यः) कर्मफलभोक्ता (वशः) वशीभूत जीवात्मा (कानीते) कमनीय-वाञ्छनीय (पृथुश्रवसि) महायशस्वी ईश्वर के निकट (अस्याः) इस प्रभातवेला के (व्युष्टौ) प्रकाश में (आददे) उसकी महिमा को ग्रहण कर सके ॥२१॥
भावार्थभाषाः - विद्वान् इस प्रकार उपदेश करें, जिससे जीवगण ईश्वराभिमुख हों ॥२१॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

हिरण्यय रथ

पदार्थान्वयभाषाः - [१] उस (पृथुश्रवसः) = विस्तृत कीर्तिवाले, कानीतस्य दीप्त, (सुराधसः) = शोभन ऐश्वर्योंवाले प्रभु के (दानासः) = ये सब दृश्यमान दान है। गतमन्त्र में वर्णित दस इन्द्रियाश्व भी उस प्रभु की ही देन हैं। [२] (हिरण्ययं रथं ददत्) = इस ज्योतिर्मय शरीररथ को देता हुआ वह प्रभु (मंहिष्ठः) = हमारे लिए दातृतम है-सर्वोत्तम दाता है। इन वस्तुओं को देने के साथ वे प्रभु (सूरिः अभूत्) = प्रेरणा देनेवाले हैं। इन वस्तुओं का प्रयोग व प्रतियोग न करके यथायोग करने के लिए प्रभु प्रेरणा दे रहे हैं। इस प्रेरणा के द्वारा ही प्रभु हमारे लिए (चर्षिहष्)ठ = अत्यन्त उत्कृष्ठ व बहुत (अवः) = ज्ञान को अकृत करते हैं। इस ज्ञान से ही तो हमारा जीवन पवित्र बनता है।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- प्रभु के दान अनन्त हैं। प्रभु ने यह ज्योतिर्मय शरीररथ हमें दिया है। इसको चलाने के लिए वे प्रेरणा दे रहे हैं। इस प्रेरणा से ही हमारा ज्ञान बढ़ता है।
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शिव शंकर शर्मा

ईश्वरानुगृहीतस्य वर्णनमारभते।

पदार्थान्वयभाषाः - सः प्रसिद्धो विद्वान्। आ+एतु=आगच्छतु। यः। अदेवः=देवादन्यो मनुष्यः। ईवत्=गमनशीलं सर्वत्र व्याप्तम्। पूर्त्तं=पूर्णमीशम्। आददे=आदत्ते स्वीकरोति यथा चित्=येन प्रकारेण। अश्व्यः=भोक्ता। अश भोजने वशो वशी भूतो जीवात्मा। कानीते=कमनीये। पृथुश्रवसि=महायशसि ईश्वरे। अस्या उषसः। व्युष्टौ=प्रकाशे। आददे ॥२१॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - The gifts of generosity of the supreme giver universally renowned, sublime and bountiful, giving a golden chariot to the devotee, earn him the tributes of being most glorious and spread his fame as the most munificent hero.