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ष॒ष्टिं स॒हस्राश्व्य॑स्या॒युता॑सन॒मुष्ट्रा॑नां विंश॒तिं श॒ता । दश॒ श्यावी॑नां श॒ता दश॒ त्र्य॑रुषीणां॒ दश॒ गवां॑ स॒हस्रा॑ ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ṣaṣṭiṁ sahasrāśvyasyāyutāsanam uṣṭrānāṁ viṁśatiṁ śatā | daśa śyāvīnāṁ śatā daśa tryaruṣīṇāṁ daśa gavāṁ sahasrā ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

ष॒ष्टिम् । स॒हस्रा॑ । अश्व्य॑स्य । अ॒युता॑ । अ॒स॒न॒म् । उष्ट्रा॑नाम् । विं॒श॒तिम् । श॒ता । दश॑ । श्यावी॑नाम् । श॒ता । दश॑ । त्रिऽअ॑रुषीणाम् । दश॑ । गवा॑म् । स॒हस्रा॑ ॥ ८.४६.२२

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:46» मन्त्र:22 | अष्टक:6» अध्याय:4» वर्ग:5» मन्त्र:2 | मण्डल:8» अनुवाक:6» मन्त्र:22


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शिव शंकर शर्मा

पदार्थान्वयभाषाः - (इन्द्र) हे सर्वसम्पत्तियुक्त (शविष्ठ) हे महाबलवन् महेश ! (दुर्मतीनाम्) दुष्ट बुद्धिवाले जनों के और निकृष्ट बुद्धियों के (प्रभङ्गम्) भञ्जक पदार्थ हमको (आभर) दे। (चोदयन्मते) हे शुभकर्मों में बुद्धिप्रेरक देव ! (युज्यम्) सुयोग्य उचित (रयिम्) धन (अस्मभ्यम्) हमको दे। (चोदयन्मते) हे ज्ञानविज्ञानप्रेरक ! हे चैतन्यप्रद ईश ! (ज्येष्ठम्) श्रेष्ठ प्रशस्त हितकारी वस्तु हमको दे ॥१९॥
भावार्थभाषाः - दुर्जनों और नीच बुद्धियों से जगत् की बहुत हानि होती है, अतः विद्वानों को उचित है कि सुबुद्धि और सुजन जगत् में उत्पन्न करें ॥१९॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

अश्व-उष्ट्र-गौ

पदार्थान्वयभाषाः - [१] ' अश्नुते इति अश्व:, तेषु उत्तमः अश्व्यः' (अश्व्यस्य) = व्यापक तत्त्वों में सर्वोत्तम उस प्रभु के (अयुता) = सदा साथ रहनेवाले (षष्टिं सहस्त्रा) = 'आध्यात्मिक- आधिभौतिक व आधिदैविक' इन त्रिविध अश्वों के कारण बीस हज़ार होते हुए भी साठ हजार मन्त्ररूप वचनों को मैं (असनम्) = प्राप्त करूँ। इन मन्त्ररूप वचनों के द्वारा होनेवाले (उष्ट्राणां विंशतिं) [उष दाहे+त्र] = दोषदहन की २० क्रियाओं को (शता) = शतवर्षपर्यन्त प्राप्त करूँ। मेरे दसों प्राण व दसों इन्द्रियाँ बड़ी निर्दोष बनें। इन बीस के सब दोष ज्ञानाग्नि में दग्ध हो जाएँ। [२] इस प्रकार दोषदहन से दश (श्यावीनां) = [श्यैङ् गतौ] दस गतिशील इन्द्रियों को भी (शता) = शतवर्षपर्यन्त प्राप्त करूँ । इन्द्रियाँ निर्दोष बनें और सौ वर्ष तक ठीक कार्य करती रहें। इन इन्द्रियों के ठीक होने पर (त्र्यरुषीणाम्) = शरीर, मन व मस्तिष्क- तीनों को आरोचमान बनानेवाली अथवा 'ज्ञान-कर्म-उपासना' तीनों का प्रकाश करनेवाली (गवां) = वेदवाणीरूपी गौओं को (दश दश) = दस गुणा दस अर्थात् १०० वर्ष तक प्राप्त करूँ। ये वेदवाणीरूप गौएँ (सहस्त्रा) = मेरे लिए [स+हस्] आनन्दोल्लास को देनेवाली हों।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- प्रभु के मन्त्ररूप वचनों को प्राप्त करके मैं प्राणों व इन्द्रियों को ज्ञानाग्नि में निर्दोष बना पाऊँ। मेरी ये निर्दोष इन्द्रियाँ खूब क्रियाशील हों, और ये ज्ञान, कर्म व उपासना का प्रकाश करनेवाली वेदवाणीरूप गौओं के दुग्ध का पान करें और आनन्द को सिद्ध करें।
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शिव शंकर शर्मा

पदार्थान्वयभाषाः - हे इन्द्र ! सर्वसम्पत्तिसंयुक्त हे शविष्ठ=महाबलवन् ईश ! दुर्मतीनाम्=दुष्टबुद्धीनाम्। निकृष्टानां मतीनाञ्च। प्रभङ्गं=विनाशकम्। पदार्थम्। आभर=देहि। पुनः। हे चोदयन्मते=बुद्धिप्रेरक देव ! युज्यं=योग्यम्। रयिम्। अस्मभ्यमाहर ज्येष्ठं वस्तु। देहि ॥१९॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - I have got sixty-and-ten thousand horses, twenty hundred camels, and ten hundred dark brown, ten hundred tawny red, in all ten thousand cows.