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सनि॑त॒: सुस॑नित॒रुग्र॒ चित्र॒ चेति॑ष्ठ॒ सूनृ॑त । प्रा॒सहा॑ सम्रा॒ट् सहु॑रिं॒ सह॑न्तं भु॒ज्युं वाजे॑षु॒ पूर्व्य॑म् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

sanitaḥ susanitar ugra citra cetiṣṭha sūnṛta | prāsahā samrāṭ sahuriṁ sahantam bhujyuṁ vājeṣu pūrvyam ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

सनि॑त॒रिति॑ । सुऽस॑नितः । उग्र॑ । चित्र॑ । चेति॑ष्ठ । सूनृ॑त । प्र॒ऽसहा॑ । सम्ऽरा॒ट् । सहु॑रिम् । सह॑न्तम् । भु॒ज्युम् । वाजे॑षु । पूर्व्य॑म् ॥ ८.४६.२०

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:46» मन्त्र:20 | अष्टक:6» अध्याय:4» वर्ग:4» मन्त्र:5 | मण्डल:8» अनुवाक:6» मन्त्र:20


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शिव शंकर शर्मा

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यों ! हम मनुष्य उस इन्द्र की (स्तवामहे) स्तुति करते हैं, जो (मीढुषे) सम्पूर्ण कल्याणों की वर्षा करनेवाला है, पुनः (अरंगमाय) जो अतिशय भ्रमणकारी है और (जग्मये) भक्तों के निकट जाना जिसका स्वभाव है। हे भगवन् तू (विश्वमनुषाम्) सकल मनुष्यजातियों में और (मरुताम्) वायु आदि देवजातियों में (इयक्षसि) पूज्य और यजनीय है। हे ईश (यज्ञेभिः) यज्ञों से (गीर्भिः) निज-२ भाषाओं से (नमसा) नमस्कार से (गिरा) स्तुति से (त्वा) तुझको ही (गाये) मैं गाता हूँ, हम सब गाते हैं ॥१७॥
भावार्थभाषाः - उसी ईश्वर का सब गान करें, जो परमपूज्य है ॥१७॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

भुज्यु पूर्व्य = शत्रु से अपना रक्षण

पदार्थान्वयभाषाः - [१] (सनितः) = हे सब धनों के संभक्त, (सुसनितः) = खूब अच्छी प्रकार धनों का संविभाग करनेवाले, (उग्र) = तेजस्विन्, (चित्र) = [चित्] ज्ञान के देनेवाले, (चेतिष्ठ) = चेतानेवाले, (सूनृत) = प्रिय सत्य वाणीवाले प्रभो ! आप सम्राट् शासक हैं, शक्ति से दीप्त हैं। [२] हे प्रभो! आप (वाजेषु) = संग्रामों में (प्रासहा) = उस शत्रु का पराभव करिये जो (सहुरिं) = सबका मर्षण करनेवाला है, (सहन्तं) = सहनेवाला है- शत्रुकृत घाटे से न घबरानेवाला है। (भुज्युं) = अपने भोग को बढ़ानेवाला है तथा (पूव्यम्) = पहले आक्रमण करनेवाला है।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- प्रभु ही शासक हैं। वे हमारे अपने भोग को बढ़ानेवाले तथा प्रथम आक्रमण करनेवाले शत्रु को कुचलनेवाले हैं।
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शिव शंकर शर्मा

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्याः ! वयम्। मीढुषे=कल्याणानां सेक्त्रे। अरंगमाय=अलंगन्त्रे। जग्मये=गमनशीलाय। इन्द्राय स्तवामहे। सर्वत्र कर्मणि चतुर्थी। स्तुतः सन् सः। महः=महान् देवः। वः=युष्मान् प्रति। अरंगमनम्। सु=सुष्ठु। इषे=इच्छेत्। हे भगवन् ! त्वम्। विश्वमनुषां=विश्वेषां मनुष्याणाम्। मरुताम्=मरुत्प्रभृतीनां देवानाम्। मध्ये। इयक्षसि=त्वमेव इज्यसे। ईदृशं त्वा=त्वाम्। यज्ञेभिः। गीर्भिः। नभसा गिरा च। गाये ॥१७॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - O generous lord, most charitable giver, mighty, wonderful, most conscientious and attentive, most truthful, tolerant and courageous, supreme ruler, bring us the mind and material, power and force which is patient and courageous, challenging, useful and of permanent value.