त्वां हि स॒त्यम॑द्रिवो वि॒द्म दा॒तार॑मि॒षाम् । वि॒द्म दा॒तारं॑ रयी॒णाम् ॥
अंग्रेज़ी लिप्यंतरण
मन्त्र उच्चारण
tvāṁ hi satyam adrivo vidma dātāram iṣām | vidma dātāraṁ rayīṇām ||
पद पाठ
त्वाम् । हि । स॒त्यम् । अ॒द्रि॒ऽवः॒ । वि॒द्म । दा॒तार॑म् । इ॒षाम् । वि॒द्म । दा॒तार॑म् । र॒यी॒णाम् ॥ ८.४६.२
ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:46» मन्त्र:2
| अष्टक:6» अध्याय:4» वर्ग:1» मन्त्र:2
| मण्डल:8» अनुवाक:6» मन्त्र:2
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शिव शंकर शर्मा
पदार्थान्वयभाषाः - हे सर्वमङ्गलमयदेव ! (यत्) जो विज्ञान या धन आपने (वीळौ) सुदृढ़तर स्थान में (यत्) जो धन (स्थिरे) निश्चल स्थान में (यत्) जो (पर्शाने) विकट स्थान में (पराभृतम्) रक्खा है, (तत्) उस सब (स्पार्हम्) स्पृहणीय (वसु) धन को इस जगत् में (आभर) अच्छी तरह से भर दो ॥४१॥
भावार्थभाषाः - पर्वत, समुद्र और पृथिवी के अभ्यन्तर में बहुत धन गुप्त हैं। वैज्ञानिक पुरुष इसको जानते हैं। विद्वानों को उचित है कि उस-२ धन को जगत् के कल्याण के लिये प्रकाशित करें ॥४१॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार
'इषां रयीणाम्' दातारम्
पदार्थान्वयभाषाः - [१] हे (अद्रिवः) = [अत्ति शत्रुम्] शत्रुओं का विध्वंस करनेवाले प्रभो ! (त्वां) = आपको (हि) = ही (सत्यं) = सचमुच (इषां) = उत्तम प्रेरणाओं का (दातारम्) = देनेवाला (विद्म) = जानें। [२] हम आपको ही (रयीणाम्) = सब धनों का (दातारं) = दाता (विद्म) = जानें।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- प्रभु ही सब धनों को देनेवाले हैं। वे ही इन धनों के सदुपयोग के लिए प्रेरणाओं को प्राप्त कराते हैं।
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शिव शंकर शर्मा
पदार्थान्वयभाषाः - हे सर्वमङ्गलमयदेव ! यद्विज्ञानम्। धनं वा वीळौ=दृढे स्थाने। यत्। स्थिरे=अचले स्थाने। यत्। पर्शाने=विकटे स्थाने। पराभृतम्=स्थापितम्। तत्सर्वं स्पार्हम्। वसु आभर ॥४१॥
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डॉ. तुलसी राम
पदार्थान्वयभाषाः - Lord of the thunderbolt, we know you are eternal and constant, ever true, giver of all foods and energies, and we know you are the giver of all kinds and forms of wealth, honour and excellence.
