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ये पा॒तय॑न्ते॒ अज्म॑भिर्गिरी॒णां स्नुभि॑रेषाम् । य॒ज्ञं म॑हि॒ष्वणी॑नां सु॒म्नं तु॑वि॒ष्वणी॑नां॒ प्राध्व॒रे ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ye pātayante ajmabhir girīṇāṁ snubhir eṣām | yajñam mahiṣvaṇīnāṁ sumnaṁ tuviṣvaṇīnām prādhvare ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

ये । पा॒तय॑न्ते । अज्म॑ऽभिः । गि॒री॒णाम् । स्नुऽभिः॑ । ए॒षा॒म् । य॒ज्ञम् । म॒हि॒ऽस्वणी॑नाम् । सु॒म्नम् । तु॒वि॒ऽस्वणी॑नाम् । प्र । अ॒ध्व॒रे ॥ ८.४६.१८

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:46» मन्त्र:18 | अष्टक:6» अध्याय:4» वर्ग:4» मन्त्र:3 | मण्डल:8» अनुवाक:6» मन्त्र:18


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शिव शंकर शर्मा

पदार्थान्वयभाषाः - (पुरुहूत) हे सर्वजनाहूत हे सर्वमानव सुपूजित देव ! मेरे (तन्वे) शरीर के पोषण के लिये तू (रेक्णः) धन का (ददिः) दाता हो (वसु+ददिः) कोश दे (वाजेषु) संग्राम उपस्थित होने पर (वाजिनम्) नाना प्रकार के अश्व आदि पशु (ददिः) दे। ये सब (नूनम्) निश्चय करके दे (अथ) और भी जो आवश्यकता हो, उसे भी तू पूर्ण कर ॥१५॥
भावार्थभाषाः - आपत्ति और सम्पत्ति, सब समय में ईश्वर की स्तुति और प्रार्थना करो ॥१५॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

अज्मभिः स्नुभिः

पदार्थान्वयभाषाः - [१] (गिरीणां) = आश्रमों में ज्ञानोपदेश करनेवाले [गृणन्ति] गुरुओं के (अज्मभिः) = जीवनमार्गों से (स्नुभिः) = इनकी स्नायुओं से इनकी तरह उत्साह से (ये) = जो (पातयन्ते) = चलते हैं, (एषां) = इन (महिष्वणीनां) = महनीय ध्वनिवाले ज्ञानियों के (यज्ञं) = संग को [यज संगतिकरणे] हम प्राप्त हों। इनके संग में हम भी तत्त्वदर्शनवाले बनें। [२] इन (तुविष्वणीनां) = महान् ध्वनिवालों के (सुम्नं) = स्तोत्रों को (अध्वरे) = इस जीवनयज्ञ में हम प्राप्त करें। स्तोत्रों का ऊँचे-ऊँचे उच्चारण करें।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- हम ज्ञानोपदेष्टाओं के मार्गों व उत्साहों का अवलम्बन करते हुए चलें। हम इनके सम्पर्क में आकर प्रभु के स्तोता बनें।
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शिव शंकर शर्मा

पदार्थान्वयभाषाः - हे पुरुहूत ! पुरुभिर्बहुभिराहूत पूजित देव ! त्वम्। तन्वे=शरीराय शरीरपोषणाय। रेक्णो धनम्। ददिः=दाता भव। पुनः। वसु=कोशम्। ददिः=दाता भव। धनस्य कोशस्य च दाता भवेत्यर्थः। वाजेषु=संग्रामेषु उपस्थितेषु। वाजिनं=अश्वादिपशुम्। ददिः। अथ। नूनं=निश्चितं यथा तथा देहि ॥१५॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - We celebrate the roaring and tempestuous winds, Maruts, who, with their power and force, shake the clouds and streams down these mountains, give us gifts of yajnic well-being and joy in our creative and developmental programmes of love and non-violence.