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अ॒ग्निं दू॒तं पु॒रो द॑धे हव्य॒वाह॒मुप॑ ब्रुवे । दे॒वाँ आ सा॑दयादि॒ह ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

agniṁ dūtam puro dadhe havyavāham upa bruve | devām̐ ā sādayād iha ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अ॒ग्निम् । दू॒तम् । पु॒रः । द॒धे॒ । ह॒व्य॒ऽवाह॑म् । उप॑ । ब्रु॒वे॒ । दे॒वान् । आ । सा॒द॒या॒त् । इ॒ह ॥ ८.४४.३

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:44» मन्त्र:3 | अष्टक:6» अध्याय:3» वर्ग:36» मन्त्र:3 | मण्डल:8» अनुवाक:6» मन्त्र:3


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शिव शंकर शर्मा

पदार्थान्वयभाषाः - (सहस्वः) हे महाबलिष्ठ यद्वा हे जगत्कर्त्ता ! (अग्ने) हे सर्वाधार ईश ! (यत्) जो (ते) आपका धन (न+उपदस्यति) कदापि क्षीण नहीं होता अर्थात् विज्ञानरूप वा मोक्षरूप धन है, (तत्) उस (दात्रम्) दानीय (वार्य्यम्) वरणीय=स्वीकरणीय (वसु) धन को (त्वत्) आप से (ईमहे) माँगते हैं ॥३३॥
भावार्थभाषाः - अपने पुरुषार्थ से लौकिक धन उपार्जन करे, परन्तु विज्ञानरूप धन उस जगदीश्वर से माँगे ॥३३॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

'दूत- हव्यवाट्' प्रभु

पदार्थान्वयभाषाः - [१] मैं (अग्निं) = उस अग्रणी प्रभु को (दूतं) = ज्ञानसन्देश को प्राप्त करानेवाले के रूप में (पुरः दधे) = सदा सामने स्थापित करता हूँ-प्रभु को कभी विस्मृत नहीं करता। (हव्यवाहम्) = सब पदार्थों को प्राप्त करानेवाले प्रभु से मैं (उपब्रुवे) = प्रार्थना करता हूँ-सब हव्यों को प्राप्त कराने के लिए प्रभु को पुकारता हूँ। [२] ये प्रभु कृपा करके (इह) = इस जीवन में (देवान्) = सब दिव्य गुणों को (आसादयात्) = बिठाएँ- स्थापित करें।
भावार्थभाषाः - भावार्थ:- प्रभु ज्ञानसन्देश को प्राप्त करानेवाले हैं, प्रभु ही सब हव्य पदार्थों को प्राप्त कराते हैं। प्रभु के अनुग्रह से ही हमारा जीवन दिव्यगुणसम्पन्न बनता है ।
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शिव शंकर शर्मा

पदार्थान्वयभाषाः - हे सहस्वः महाबलिष्ठ यद्वा जगत्कर्तः परमात्मन् ! यत्। ते=तव धनम्। न उपदस्यति=न कदापि उपक्षीयते विज्ञानरूपं मोक्षस्वरूपं वा धनम्। तत्। दात्रं=दानीयम्। वार्य्यम्=वरणीयम्। वसु=धनम्। त्वत्=त्वत्तः। हे अग्ने ! ईमहे=याचामहे ॥३३॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - I place the divine fire in front of me, speak closely to the sacred bearer of oblations and pray that it may bring the divinities with divine blessings here to join us.