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अ॒ग्निः शुचि॑व्रततम॒: शुचि॒र्विप्र॒: शुचि॑: क॒विः । शुची॑ रोचत॒ आहु॑तः ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

agniḥ śucivratatamaḥ śucir vipraḥ śuciḥ kaviḥ | śucī rocata āhutaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अ॒ग्निः । शुचि॑व्रतऽतमः । शुचिः॑ । विप्रः॑ । शुचिः॑ । क॒विः । शुचिः॑ । रो॒च॒ते॒ । आऽहु॑तः ॥ ८.४४.२१

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:44» मन्त्र:21 | अष्टक:6» अध्याय:3» वर्ग:40» मन्त्र:1 | मण्डल:8» अनुवाक:6» मन्त्र:21


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शिव शंकर शर्मा

पदार्थान्वयभाषाः - (अग्ने) हे परमात्मन् ! (हि) जिस कारण तू (स्वर्पतिः) सुख और ज्योति का अधिपति है और (वार्यस्य) वरणीय सुखकारक (दात्रस्य) दातव्य धन का (ईशिषे) ईश्वर है, अतः हे भगवन् ! मैं (तव+शर्मणि) तुझमें कल्याणरूप शरण पाकर (स्तोता+स्याम्) स्तुति पाठक बनूँ ॥१८॥
भावार्थभाषाः - जिस कारण वह ईश्वर सुख और प्रकाशक अधिपति है और धनों का भी वही स्वामी है, अतः हे मनुष्यों ! उसी की शरण लो। उसी की कीर्ति गाते हुए स्तुति पाठक और विद्वान् बनो ॥१८॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

'शुचिव्रततम' प्रभु

पदार्थान्वयभाषाः - [१] (अग्निः) = वे अग्रणी प्रभु (रोचते) = दीप्त होते हैं। ये प्रभु (शुचिव्रततमः) = अत्यन्त पवित्र व्रतोंवाले हैं। (शुचि:) = पवित्र हैं, (विप्रः) = ज्ञानी हैं। (शुचिः) = पवित्र हैं, व (कविः) = क्रान्तप्रज्ञ हैं । [२] ये (शुचिः) = पवित्र कर्मोंवाले हैं। पवित्र ज्ञानवाले हैं। पवित्र दानोंवाले हैं।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- राष्ट्र का नायक अत्यन्त पवित्र कर्मों को करनेवाला, पवित्र बुद्धिवाला तथा दूरदर्शी हो ।
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शिव शंकर शर्मा

पदार्थान्वयभाषाः - हे अग्ने परमात्मन् ! हि=यतस्त्वम्। स्वर्पतिः=स्वः सुखस्य प्रकाशस्य च पतिरसि। त्वम्। वार्य्यस्य=वरणीयस्य। दात्रस्य=दातव्यस्य धनस्य। ईशिषे=ईश्वरोऽसि। अतः हे भगवन् ! तव शर्मणि। स्तोता स्याम् ॥१८॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Agni is the purest uncompromising lord of law and discipline, lord of purest unclouded knowledge and wisdom, master of purest transparent creative vision and imagination, and he shines ever pure, unsullied, invoked and worshipped.