स॒मिधा॒ग्निं दु॑वस्यत घृ॒तैर्बो॑धय॒ताति॑थिम् । आस्मि॑न्ह॒व्या जु॑होतन ॥
अंग्रेज़ी लिप्यंतरण
मन्त्र उच्चारण
samidhāgniṁ duvasyata ghṛtair bodhayatātithim | āsmin havyā juhotana ||
पद पाठ
स॒म्ऽइधा॑ । अ॒ग्निम् । दु॒व॒स्य॒त॒ । घृ॒तैः । बो॒ध॒य॒त॒ । अति॑थिम् । आ । अ॒स्मि॒न् । ह॒व्या । जु॒हो॒त॒न॒ ॥ ८.४४.१
ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:44» मन्त्र:1
| अष्टक:6» अध्याय:3» वर्ग:36» मन्त्र:1
| मण्डल:8» अनुवाक:6» मन्त्र:1
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शिव शंकर शर्मा
पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यों ! हम उपासकगण (मन्द्रम्) आनन्दविधायक (पुरुप्रियम्) बहुप्रिय (शीरम्) सब पदार्थों में शयनशील अर्थात् व्यापक और (पावकशोचिषम्) पवित्र तेजोयुक्त (अग्निम्) उस परमदेव से (हृद्भिः) मनोहर और (मन्द्रैः) आनन्दप्रद स्तोत्रों द्वारा (ईमहे) प्रार्थना करते हैं, आप भी उसी की प्रार्थना कीजिये ॥३१॥
भावार्थभाषाः - सब कोई उसी देव की पूजा उपासना करें, अन्य की नहीं ॥३१॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार
'समिधा, घृत, हव्य' से प्रभुपूजन
पदार्थान्वयभाषाः - [१] (समिधा) = ज्ञानदीप्ति के द्वारा (अग्निं) = उस प्रकाशमय प्रभु का (दुवस्यत) = पूजन करो। (घृतैः) = मलों के क्षरण व ज्ञानदीप्तियों से (अतिथिम्) = निरन्तर गतिशील उस प्रभु को (बोधयत) = अपने में जगाओ। [२] (अस्मिन्) = इस प्रभु की प्राप्ति के निमित्त (हव्या आजुहोतन) = हव्य पदार्थों को ही अपने में ही आहुत करो, अर्थात् पवित्र यज्ञिय पदार्थों का ही सेवन करो।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- प्रभु प्राप्ति के लिए तीन उपाय हैं - [१] अपने अन्दर ज्ञानदीप्ति का वर्धन करना, [२] मानसमलों को अपने से दूर करना [इन मलों का क्षरण], [३] हव्य पदार्थों को सेवन करना ।
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शिव शंकर शर्मा
पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्याः ! वयम्। मन्द्रं=मादयितारम् आनन्दयितारम्। पुरुप्रियं=बहुप्रियम्। शीरं=सर्वेषु पदार्थेषु शयितारम् व्यापकमित्यर्थः। पावकशोचिषम्=पवित्रतेजस्कम्। ईदृशम्। अग्निम्। हृद्भिः=हृदयंगमैः। मन्द्रैः=आनन्दप्रदैः स्तोत्रैः। ईमहे=याचामहे प्रार्थयामहे यूयमपि तमेव प्रार्थयध्वम् ॥३१॥
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डॉ. तुलसी राम
पदार्थान्वयभाषाः - Feed the sacred fire with holy fuel, awaken and arouse it with ghrta, offer fragrant food worthy of the divine, and serve it as an honoured guest who visits at his own free will.
