वांछित मन्त्र चुनें

अ॒प्स्व॑ग्ने॒ सधि॒ष्टव॒ सौष॑धी॒रनु॑ रुध्यसे । गर्भे॒ सञ्जा॑यसे॒ पुन॑: ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

apsv agne sadhiṣ ṭava sauṣadhīr anu rudhyase | garbhe sañ jāyase punaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अ॒प्ऽसु । अ॒ग्ने॒ । सधिः॑ । तव॑ । सः । ओष॑धीः । अनु॑ । रु॒ध्य॒से॒ । गर्भे॑ । सन् । जा॒य॒से॒ । पुन॒रिति॑ ॥ ८.४३.९

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:43» मन्त्र:9 | अष्टक:6» अध्याय:3» वर्ग:30» मन्त्र:4 | मण्डल:8» अनुवाक:6» मन्त्र:9


0 बार पढ़ा गया

शिव शंकर शर्मा

अग्नि के गुण तबतक दिखलाए जाते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - (यद्) जब (अग्निः) भौतिक अग्नि (क्षमि) पृथिवी पर (रोधति) फैलता है, तब (जातवेदसः) उस जातवेदा अग्नि के (प्रयाणे) प्रसरण से (पत्सुतः) नीचे की (रजांसि) धूलियाँ (कृष्णा) काली हो जाती हैं ॥६॥
भावार्थभाषाः - कहीं-२ पर वेद भगवान् स्वाभाविक वर्णन दिखलाते हैं, जिससे मनुष्य यह शिक्षा ग्रहण करे कि प्रथम प्रत्येक वस्तु का मोटा-मोटा गुण जाने। तत्पश्चात् विशेष गुण का अध्ययन करे। हे मनुष्यों ! इन बातों की सूक्ष्मता की ओर ध्यान दो ॥६॥
0 बार पढ़ा गया

हरिशरण सिद्धान्तालंकार

वानस्पतिक भोजन व प्रभुदर्शन

पदार्थान्वयभाषाः - [१] (अग्ने) = प्रभो ! (अप्सु) = सब प्रजाओं में (तव) = तेरी (सधि) = समानरूप से स्थिति है। (सः) = वे आप (ओषधीः अनुरुध्यसे) = ओषधियों का अनुरोध [अपेक्षा] करते हैं, अर्थात् आपके दर्शन के लिए आवश्यक है कि मनुष्य मांसाहार की ओर न झुके । [२] (गर्भे सन्) = सब प्राणियों के अन्दर होते हुए आप (पुनः) = फिर जायसे प्रादुर्भूत होते हैं। प्रभु की सत्ता तो सर्वत्र ही है। पवित्र हृदय में प्रभु का प्रकाश दिखता है। पवित्र हृदय के लिए पवित्र भोजन की अवश्यकता है।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- प्रभु का निवास सब में हैं। उनका प्रादुर्भाव व प्रकाश वहीं होता है, जहाँ पवित्र भोजन के परिणामरूप पवित्र हृदयों का निर्माण होता है।
0 बार पढ़ा गया

शिव शंकर शर्मा

अग्निगुणाः प्रदर्श्यन्ते तावत्।

पदार्थान्वयभाषाः - यद्=यदा। अग्निः। क्षमि=क्षमायां भूमौ। रोधति=प्रसरति। तदा जातवेदसोऽग्नेः। प्रयाणे=प्रसरणे। पत्सुतः= पदतलस्थानि। रजांसि=रेणवः। कृष्णा=कृष्णानि भवन्ति ॥६॥
0 बार पढ़ा गया

डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Agni, your home is in the waters, you dwell in the herbs and trees, you abide in the womb of nature and you are born again and again, ever youthful in various forms.